नीलोत्पल आचार्य
मुंबई। खाना बनाने से लेकर शॉपिंग करने तक हरेक चीज के लिए स्मार्ट फोन में एप्स हैं। इन एप्स को हम अपने लिए मददगार समझते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। अधिकांश एप्स हमें गुमराह करते हैं।
ये हमारी निर्णय क्षमता को प्रभावित करते हैं और गलत तरीके से हमारी निजता में भी दखल देते हैं। ये जानकारी भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) और पैरलल एचक्यू की स्टडी में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, स्टडी में शामिल 53 में से 52 एप्स यूजर्स को गुमराह करते हैं। उनकी गोपनीयता में दखल देते हैं। ये एप्स डार्क पैटर्न का इस्तेमाल करते हैं। इसमें नेटफ्लिक्स, ओला, स्विगी जैसे प्रमुख एप्स भी शामिल हैं।
निर्णय क्षमता को प्रभावित कर रहे
एएससीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि एप्स यूजर्स की स्वायत्तता, निर्णय की प्रक्रिया या निर्णय क्षमता को प्रभावित करते हैं। भ्रामक पैटर्न के जरिए धोखा देते हैं।
शॉपिंग एप्स ड्रिप प्राइसिंग व झूठी तात्कालिकता का दबाव बनाते हैं। ड्रिप प्राइसिंग एक मूल्य निर्धारण रणनीति है, जिसमें किसी वस्तु की कुल लागत का केवल एक हिस्सा ही दिखाया जाता है।
यूजर्स को अकाउंट डिलीट करने में होती मुश्किल
स्टडी में शामिल सभी ई-कॉमर्स एप्स ने यूजर्स के लिए अकाउंट को डिलीट करना कठिन बना दिया है, जबकि पांच में से चार हेल्थ-टेक एप्स यूजर्स पर निर्णय लेने के लिए जल्दबाजी करने हेतु समय आधारित दबाव बनाते हैं। हेल्थ एप्स में भ्रामक पैटर्न सबसे अधिक हैं। इसके बाद ट्रैवल बुकिंग और ई-कॉमर्स का स्थान है। गेमिंग एप कम भ्रामक थे।
इन एप्स को 21 अरब बार डाउनलोड किए गया
यूजर्स को गुमराह कर रहे ये एप्स 21 अरब बार डाउनलोड किए गए हैं। विश्लेषण किए गए एप्स में से 79 प्रतिशत गोपनीयता संबंधित गड़बड़ी करते पाए गए। 45 प्रतिशत यूजर इंटरफेस में दखलअंदाजी कर रहे थे। 43 प्रतिशत ड्रिप प्राइसिंग करते हैं। 32 प्रतिशत झूठी तात्कालिकता दिखाकर दबाव बनाते हैं।