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170 साल पुरानी है खाकी की कहानी

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170 साल पुरानी है खाकी की कहानी

by Blitzindiamedia
December 10, 2022
in स्टेट-नेशनल
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170 साल पुरानी है खाकी की कहानी

ब्लिट्ज ब्यूरो

नई दिल्ली। पुलिस को खाकी की वर्दी आखिर कहां से मिली, ये विचार तो कभी न कभी सभी के मन में आता होगा। अंग्रेजों के काल से ही पुलिस की खाकी वर्दी दिखाई दे रही है।

वस्तुत: पुलिस के लिए खाकी का प्रयोग सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। कर्नाटक के तटीय शहर मेंगलुरू में 1851 में इसकी श्ाुरुआत हुई थी। जॉन हॉलर नाम के एक जर्मन टेक्सटाइल इंजीनियर और ईसाई मिशनरी शहर में बालमपट्टा के बाजल मिशन वीविंग इस्टेब्लिशमेंट (कपड़े बनाने की फैक्ट्री) में काम करते थे। उन्होंने ही पहली बार कपड़ों को कलर करने के लिए खाकी डाई को खोजा। खाकी की कहानी 170 साल पुरानी है।

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1989 में बेसल मिशन पर रिसर्च करने वाले विवेकानंद कॉलेज, पुत्तुर के प्रिंसिपल डॉक्टर पीटर विल्सन प्रभाकर के अनुसार 1851 में हॉलर को फैक्ट्री के इंचार्ज की जिम्मेदारी सौंपी गई। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी खाकी डाई का आविष्कार। उसके नेतृत्व में कपड़ा फैक्ट्री ने 1852 से खाकी कपड़ों को बनाना शुरू किया। प्रभाकर ने कन्नड़ में ‘भारतदल्ली बाजल मिशन’ (भारत में बाजल मिशन) नाम की किताब भी लिखी।

खाकी उर्दू का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है धूल का रंग। यह खाक शब्द से बना है। प्रभाकर के मुताबिक 1848 में ही खाकी शब्द ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में जगह पा चुका था लेकिन इसके 3 साल बाद इस नाम से पहली बार डाई बनी। हॉलर ने काजू के खोल का इस्तेमाल करते हुए इस डाई को बनाया। वैसे भी दक्षिण कर्नाटक में बड़ी तादाद में काजू का उत्पादन होता है।

खाकी रंग की डाई जल्द ही तेजी से लोकप्रिय होती गई। थियोलॉजिकल कॉलेज में आर्काइव दस्तावेज के अनुसार ‘कपड़े की फैक्ट्री चलती रही और खूब आगे बढ़ी। हर तरह के कपड़े बनते और पहनने के लिए तैयार किए जाते थे लेकिन हॉलर की खाकी मिलिटरी के बीच अपने टिकाऊपन की वजह से काफी चर्चित हो गई। उसी दौरान हॉलर के बनाए खाकी कपड़ों को तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के केनरा जिले में पुलिस यूनिफॉर्म के रूप में अपनाया गया। कासरागोड, साउथ केनरा, उडुपी और नॉर्थ केनरा में खाकी पुलिस की वर्दी बन गई।

– 1851 में हुई भारत में खोज
– बनी पुलिस की पहचान
– जर्मन टेक्सटाइल इंजीनियर जॉन हॉलर के नाम है ये खोज

खाकी की चर्चाएं मद्रास प्रेसीडेंसी के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड रॉबर्ट्स तक भी पहुंच गईं। उनके मन में जिज्ञासा जगी कि आखिर इतना टिकाऊ कपड़ा कहां और कैसे बन रहा है। प्रभाकर का कहना है कि लॉर्ड रॉबर्ट्स ने बलमट्टा की उस फैक्ट्री का दौरा किया जहां खाकी कपड़े बन रहे थे। वह इतना संतुष्ट हुआ कि उसने ब्रिटिश सरकार से सिफारिश की कि आर्मी के लिए खाकी को वर्दी तौर पर चुना जाए। ब्रिटिश सरकार ने उसकी सिफारिशें मान लीं और इस तरह खाकी मद्रास प्रेसीडेंसी के तहत आने वाले सैनिकों की वर्दी बन गई। कुछ समय बाद ब्रिटेन ने भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के अपने उपनिवेशों में सैनिकों के लिए खाकी को अनिवार्य कर दिया।

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