भारत में राजनीति संविधान के ढांचे के अंतर्गत काम करती है। देश की राजनीति आज के समय में लोकतंत्र के सबसे सही पायदान पर है जिसमें सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार प्राप्त है। यह एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसमें सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे प्रकरण आ जाते हैं जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कभी भीतरी तो कभी बाहरी तत्व देश की अस्मिता और उसकी संप्रभुता को विखंडित करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं।
ऐसा ही कुछ प्रयास ब्रिटेन की मीडिया कंपनी ब्रिटिश ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी (बीबीसी) ने किया है। बीबीसी ने कोई 20 साल पुरानी रिपोर्ट के नाम पर जो डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ बनाई वो भी कुछ इसी तरह की कोशिश ही कही जा सकती है। भारत ही नहीं, किसी भी देश का प्रधानमंत्री उस देश की अस्मिता और उसकी संप्रभुता का प्रतीक होता है। उसकी छवि को मलिन करने के ऐसे किसी भी प्रयास का तात्पर्य यही समझा जाना चाहिए कि ऐसा कृत्य करने वाला व्यक्ति अथवा संस्था उस देश की अस्मिता और उसकी संप्रभुता पर चोट करना चाह रही है।
भारत सरकार ने बीबीसी की गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री को प्रधानमंत्री मोदी और देश के खिलाफ प्रोपेगेंडा बताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि हम नहीं जानते कि डॉक्यूमेंट्री के पीछे क्या एजेंडा है, लेकिन यह निष्पक्ष नहीं है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार है। यह डॉक्यूमेंट्री भारत के खिलाफ एक खास किस्म के दुष्प्रचार का नैरेटिव चलाने की कोशिश नजर आती है। डॉक्यूमेंट्री में स्पष्ट दिखता है कि इससे जुड़े हुए लोग और संगठन खास किस्म की सोच रखते हैं, क्योंकि इसमें फैक्ट ही नहीं हैं। यह औपनिवेशिक यानी गुलामी की मानसिकता को दर्शाती है और मंशा भी साफ नजर आ रही है कि ये भारत की छवि धूमिल करना चाहते हैं। इस प्रकार की मंशा को कभी पूरा नहीं होने दिया जा सकता।
डॉक्यूमेंट्री में कोई वस्तुनिष्ठता नहीं होने की बात भी कही जा रही है। इसे पक्षपातपूर्ण बताते हुए कहा गया है कि यह बात ‘ध्यान देने की है कि इसे भारत में प्रदर्शित नहीं किया गया है।’
यही नहीं, ब्रिटेन में रह रहे भारतीय मूल के लोगों में भी इसको लेकर बहुत गुस्सा है। बीबीसी की तीखी आलोचना हो रही है और उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए गए हैं। तमाम ऑनलाइन याचिकाओं में बीबीसी की विश्वसनीयता की स्वतंत्र जांच कराए जाने की मांग की गई है। इनमें ‘‘संपादकीय निष्पक्षता के उच्चतम मानकों’’ को पूरा करने में विफल रहने के लिए बीबीसी की ‘‘कड़ी निंदा’’ भी की गई है। स्वयं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी पाकिस्तान मूल के लेबर पार्टी के सांसद इमरान हुसैन द्वारा वहां की संसद में उठाए गए बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के मुद्दे पर साफ कह दिया कि यूके सरकार की स्थिति स्पष्ट और लंबे समय से चली आ रही है और बदली नहीं है। निश्चित रूप से हम उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करते हैं, चाहे यह कहीं भी हो, लेकिन मैं उस चरित्र-चित्रण से बिल्कुल सहमत नहीं हूं, जो नरेंद्र मोदी को लेकर सामने रखा गया है।
डॉक्यूमेंट्री की आलोचना करते हुए 302 पूर्व न्यायाधीशों, पूर्व-नौकरशाहों और दिग्गजों के एक समूह ने एक बयान पर हस्ताक्षर कर बीबीसी के खिलाफ अभियान में शामिल होने का आह्वान किया है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू का कहना है कि देश में कुछ लोग बीबीसी को भारत के सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर मानते हैं। वे अपने मकसद के लिए, आकाओं को खुश करने के लिए देश की गरिमा और छवि को किसी भी हद तक कम करने को तैयार रहते हैं जबकि देश में अल्पसंख्यक समेत हर समुदाय सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहा है। ऐसा काम करने वालों को यह बात स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि कुछ क्षुद्र मानसिकता वाले लोगों द्वारा भारत के अंदर या बाहर चलाए गए दुर्भावनापूर्ण अभियानों से भारत की छवि कभी खराब नहीं हो सकती है और प्रधानमंत्री मोदी की आवाज 1.4 अरब भारतीयों की आवाज है। लॉर्ड रामी रेंजर ने तो बीबीसी के महानिदेशक को कड़ा पत्र लिख कर साफ कहा है कि यह डॉक्यूमेंट्री न केवल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के दो बार लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री का अपमान करती है, बल्कि भारत की न्यायपालिका और संसद का भी अपमान करती है जिसने श्री मोदी की गहन जांच की और उन्हें किसी भी तरह से दंगों में शामिल होने के आरोपों से बरी किया। यह डॉक्यूमेंट्री ओछी पत्रकारिता के माध्यम से सस्ती लोकप्रियता के लिए बनाई गई प्रतीत होती है और हमें बांटने का अधिकार किसी को नहीं है। इसके आगे चल कर गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।