ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। चीन को कई स्तरों से घेरने वाले भारतीय रेल के सीमांत क्षेत्र के सबसे बड़े रेल प्रोजेक्ट से चीन बौखला गया है, उसके तथाकथित ‘स्ट्रेटेजिक’ नेतृत्व की नींद उड़ गई है। उत्तराखंड के चमोली जिले का कर्णप्रयाग, चाइना बॉर्डर के तवांग, गलवान, डोकलाम जैसा ही संवेदनशील, लेकिन कम चर्चित व कम सुर्खियों में रहने वाला स्थान है। यहां से कुछ ही किमी दूरी पर बाराहोती चीनी बॉर्डर है। कर्णप्रयाग तक 2024 में भारतीय ट्रेन आने वाली है। हिमालय के पेट से होती हुई ट्रेन ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक आएगी तब भारत चीन के गले तक पहुंच चुका होगा।
कर्णप्रयाग से जोशीमठ
दूसरा चरण कर्णप्रयाग से जोशीमठ तक का भी है, इसकी डीपीआर बन चुकी। इसके बनने के बाद हमारी ट्रेन चीन के सिर तक जा पहुंचेगी। उत्तराखंड सीमा पर सैन्य के साथ-साथ चीन को मुंहतोड़ तकनीकी चुनौती देने में भी हम सक्षम हो जाएंगे।
अब 18 नहीं, लगेंगे सर्फ 5-6 घंटे
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट 75 साल में चीनी बॉर्डर पर बन रहा सबसे बड़ा और महंगा प्रोजेक्ट है। इस पर करीब 24 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। सबसे महत्वपूर्ण है इसका रास्ता, जो 90 प्रतिशत हिमालय के पेट (अंडरग्राउंड) से होकर निकल रहा है। 125 किमी लंबे ट्रैक में 105 किमी ट्रेन टनल से होकर जाएगी जो हिस्सा खुला हुआ है, वो स्टेशन का है। वहां कुल 16 टनल्स और 12 स्टेशन हैं। प्रोजेक्ट का महत्व समझिए कि ऋषिकेश से चीन बॉर्डर (बाराहोती) पहुंचने में जहां पहले 16-18 घंटे लगते थे, अब महज 5-6 घंटे लगेंगे।
– प्रोजेक्ट का 90 प्रतिशत हिस्सा अंडरग्राउंड
– कर्णप्रयाग तक अगले साल भारतीय ट्रेन, जोशीमठ से चीन के सिर तक होगी पहुंच
पीएमओ कर रहा वीकली रिव्यू
देवप्रयाग से जनासू तक देश की सबसे लंबी (14.8 किमी) रेल टनल भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। पीएमओ प्रोजेक्ट का वीकली रिव्यू कर रहा है।
बौखलाए चीन ने बदली रणनीति
उत्तराखंड की 345 किमी लंबी चीन सीमा बहुत अहम है। सीमाओं पर लंबे समय तक तैनात रह चुके कर्नल एचएस रावत कहते हैं कि इन दिनों चीन उत्तराखंड के इसी प्रोजेक्ट से घबराया हुआ है। उसने अपनी रणनीति बदली है। इस रेल प्रोजेक्ट पर चीन का रिएक्शन सिक्कि म और अरुणाचल में सामने आता है। रावत के अनुसार चीन मानता है कि भारत उसे इस प्रोजेक्ट से तकनीकी रूप से चुनौती दे रहा है।
63 बार चीनी घुसपैठ
भारत-चीन संसदीय समूह के पूर्व अध्यक्ष तरुण विजय कहते हैं कि बाराहोती में चीन में अब तक 63 बार घुसपैठ कर चुका है। तवांग-गलवान जैसी घुसपैठ यहां भी जारी है। हमारे इस प्रोजेक्ट का गुस्सा चीन यहां भी दिखाता है और उत्तराखंड में भी। इस रेल प्रोजेक्ट ने उत्तराखंड में दिन-रात के मायने भी बदल दिए हैं। करीब दस हजार लोग चौबीस घंटे सुरंगों में काम कर रहे हैं।