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हिमाचल और गुजरात में छोटे दलों के नफे-नुकसान का गणित?

आस्था भट्टाचार्य

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में वर्तमान में बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस यहां मुख्य विपक्षी पार्टी है। अब सवाल उठने लगे हैं कि इन दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी समेत अन्य छोटे दलों से क्या इन्हें नुकसान पहुंचेगा।

इसबीच हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार भी गरम है। इन दोनों ही राज्यों में वर्तमान में बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस यहां मुख्य विपक्षी पार्टी है। हालांकि, इस बार इन दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी की एंट्री से मुकाबले के त्रिकोणीय होने की संभावना जताई जा रही है। इसी के साथ, अब सवाल उठने लगे है कि क्या बीजेपी और कांग्रेस गुजरात-हिमाचल के चुनावों में अपनी साख को बचाने के लिए विशेष रणनीति अपनाएंगे, या फिर आम आदमी पार्टी समेत अन्य छोटे दलों से इन्हें नुकसान पहुंचेगा।

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छोटे राजनीतिक दलों की बढ़ रही सियासी अहमियत
यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां हर कोई चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकता है। बीते कुछ चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) की लोकप्रियता को देखकर यह कहा जा सकता है कि एक बार फिर से छोटे राजनीतिक दलों की सियासी अहमियत बढ़ रही है। पंजाब विधानसभा चुनाव के परिणाम इसका एक उदाहरण है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि छोटे सियासी दलों और उनके नेताओं का अपनी कम्युनिटी में बहुत ही ज्यादा प्रभाव होता है और बड़ी सियासी पार्टियों को इनके वोट बैंक में सेंध लगाना बहुत ही मुश्किल होता है।

गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी ने पिछले कुछ महीने में काफी प्रचार किया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस अभी सूरत और पाटीदार बहुल इलाकों पर है। आप गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इट