ब्लिट्ज इंडिया
महिला सशक्तिकरण सदैव मोदी सरकार की नीतियों का केंद्र बिंदु रहा है। ये गर्व की बात है कि आज हमारी मातृशक्ति आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है और सरकार उनकी सुरक्षा के लिए कृतसंकल्प है।
महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का स्वरूप विश्वव्यापी है। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ इस तरह की हिंसा विश्व में सबसे भयंकर, निरंतर और व्यापक मानव अधिकार उल्लंघनों में शामिल है जिसका दंश विश्व में हर तीन में से एक महिला को भोगना पड़ता है अथवा पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि इसप्रकार की हिंसा की अधिकांश घटनाओ की प्रतिष्ठा, मौन, चुप्पी, कलंक और शर्म के कारण रिपोर्ट ही नहीं होती हैं। नागरिक सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है। विषय जब देश की आधी आबादी की गरिमा से संबद्ध हो तो और भी विचारणीय हो जाता है। आजादी के 75वें वर्ष में पदार्पण कर चुकीं व्यवस्थाएं नारी-सुरक्षा को लेकर कितनी संजीदा हैं, इसका सहज अनुमान मीडिया में अक्सर सुर्खियां बन कर उभरने वाले दुष्कर्म और प्रताड़ना के प्रकरणों से लगाया जा सकता है।
हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि एक समय में नैतिकता में विश्वगुरु रहे भारत को 26 जून, 2018 को जारी ‘थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन’ की रिपोर्ट में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश घोषित किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है। नारी गरिमा का किसी भी स्तर पर हनन अमानवीय कृत्य की श्रेणी में आता है। इस संदर्भ में अनेक कानून बनाए गए हैं लेकिन कितने भी कानून बने हों, घटनाओं की पुनरावृत्ति स्पष्ट संकेत है कि अब तक कोई भी कानून इतनी कड़ाई से क्रियान्वित नहीं हो पाया कि नारी समाज में निर्भीकता से गरिमामय जीवन जी पाए। उन्नाव, कठुआ, तेलंगाना, शिमला, हाथरस दिल्ली आदि में हुए अनेक कांड सुरक्षातंत्र की नाकामी दर्शाते हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं कि आधुनिक पालन-पोषण के भ्रमजाल में हम बच्चों को वे संस्कार ही नहीं दे पा रहे जो उन्हें नारी के प्रत्येक रूप को यथोचित सम्मान देना सिखा पाएं? बौद्धिक क्षमता तथा तकनीकी कौशल के संयोजन में कहीं हमारा वर्तमान शैक्षणिक पाठ्यक्रम देश के भावी भविष्य को नैतिक ज्ञान उपलब्ध करवाने में पिछड़ तो नहीं रहा है? आजादी के अमृत महोत्सव काल में हमें अपनी व्यवस्थाएं इतनी कुशल व सक्षम बनानी होंगी कि हमारा युवा अपनी शक्ति सार्थक व जनहित कार्यों की ओर मोड़े, न कि अनैतिक कार्यों की ओर। साथ ही महिलाएं भी निर्भीक होकर इस आजादी का अनुभव कर सकें कि वे कहीं भी आजादी के साथ आ जा सकती हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा की घटनाएं बढऩे का सीधा-सा अर्थ है कि समाज में वास्तविक साक्षरता, जनचेतना व नैतिक मूल्यों का सर्वथा अभाव अभी बरकरार है। साथ ही पुलिस-व्यवस्था व न्याय प्रणाली में भी कहीं न कहीं त्रुटि है। कोई भी व्यक्ति जन्मजात अपराधी नहीं होता। उसके चरित्र निर्माण में अनेक कारक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अपराधियों के व्यवहार में बदलाव गंभीर प्रयासों के बिना संभव नहीं।
विश्व में कई देश ऐसे हैं जहां नारी की सुरक्षा सर्वोपरि है। इन देशों की लिस्ट में आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, कनाडा,न्यूजीलैंड, नीदरलैंड्स, जर्मनी, लक्समबर्ग, ऑस्टि्रया प्रमुख हैं। इनमें भी आइसलैंड दुनिया का सबसे सुरक्षित देश माना जाता है। हम भी अगर कृतसंकल्प हों तो इन देशों में भारत का नाम भी दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले तो हमें अपने स्कूलों में ऐसी नैतिक शिक्षा अनिवार्य करनी होगी जो बाल्यकाल से ही बच्चों में स्त्रियों का सम्मान करने वाले चरित्र का निर्माण करे। कानून सख्त हों और न्याय का न्यूनतम समय में ही परिपालन हो ताकि अपराधी अपराध करने से पहले हजार बार सोचें। इसी के साथ ऐसी और दीर्घकालिक राष्ट्रीय व प्रादेशिक योजनाएं बनाई जाएं जो महिलाओं तथा बच्चों का पूर्ण अनुरक्षण कर सकें, जैसी कि ऑस्ट्रेलिया में बनाई जा रही हैं क्योंकि नारी गरिमा की अवमानना प्रत्येक स्तर पर अस्वीकार्य है, इसे प्रांतीयता, धर्म, वर्ग, जाति आदि संकीर्ण तराजुओं में नहीं तोला जा सकता। हमें देश के विकास की नई गाथा लिखने के लिए नारी गरिमा का हर हाल में संरक्षण व सम्मान करना ही होगा। इसके लिए समुचित कानूनों को और सख्ती से लागू करना होगा तभी केंद्र व राज्य की सरकारों के प्रयास फलीभूत हो पाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक ट्वीट में कहा था कि महिला सशक्तिकरण सदैव मोदी सरकार की नीतियों का केंद्र बिंदु रहा है। ये गर्व की बात है कि आज हमारी मातृशक्ति आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है और सरकार उनकी सुरक्षा के लिए कृतसंकल्प है। यही नहीं हमारी तो संस्कृति का यही मूल मंत्र भी है-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः यानि कि जहां नारियों की पूजा व आदर होता है वहीं देवताओं का वास होता है।
सामान्य शब्दों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा शारीरिक शोषण, यौन शोषण और मनोवैज्ञानिक शोषण के स्वरूपों में प्रकट होती है। हर साल 25 नवंबर को विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है, ताकि दुनिया भर में हो रहे महिलाओं एवं लड़कियों के साथ हिंसा और दुर्व्यवहार के बारे में अधिक से अधिक जागरूकता बढ़ाई जाए और महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रोका जा सके।
महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के उन्मूलन के लिए ही संयुक्त राष्ट्र की ओर से यूनाइट अभियान प्रारंभ किया गया है। यूनाइट अभियान का मकसद ही है महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के पालन को चिन्हित करना। संयुक्त राष्ट्र महासचिव की 2030 तक यूनाइट अभियान जारी रखने की योजना है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए ही इस अभियान को 2008 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून द्वारा शुरू किया गया था। दुनिया भर में महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और इसका उन्मूलन करना इसका लक्ष्य रखा गया। महिलाओं के खिलाफ हो रहे दुर्व्यवहार और हिंसा को लेकर जन जागरूकता बढ़ाना एवं चुनौतियों और समाधान पर चर्चा के अवसर पैदा करने के लिए वैश्विक कार्रवाई का आह्वान करना भी इसमें शामिल है। यह एक बहुवर्षीय प्रयास है।