नई दिल्ली में जी 20 विदेश मंत्रियों की बैठक हाल ही में संपन्न हो गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने बढ़ते प्रभुत्व के बीच भारत ने जी20 से जुड़ी अन्य बैठकों व सितंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन को भव्य और पूर्ण सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भारत चाहता है कि सुरक्षा, सहयोग और विकास के मामले में जी 20 के मंच से ऐसे संदेश ही जाएं जो वसुधैव कुटुंबकम ् के भारत के मूल मंत्र के अनुरूप हों। जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शासन ‘विफल’ हो गया है। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद बनाई गई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अपने लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही है और इस विफलता का कुप्रभाव ज्यादातर विकासशील दुनिया द्वारा महसूस किया जा रहा है।
यह बात बिल्कुल साफ है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनाई गई वैश्विक शासन की वास्तुकला दो कार्यों को पूरा करने के लिए थी। सबसे पहले, प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करके भविष्य के युद्धों को रोकने के वास्ते और दूसरा साझा हितों के मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए। यह किसी से छिपा नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों का अनुभव यही बताता है कि वित्तीय संकट, जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद और युद्ध जैसे संकटों से वैश्विक शासन अपने दोनों जनादेशों का भलीभंति पालन करने में विफल रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आए विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, जिन पर विकसित देशों का वर्चस्व है, में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसमें संयुक्त राष्ट्र भी शामिल है। इसी संदर्भ में पीएम मोदी ने जी 20 से सर्वसम्मति बनाने और मतभेदों को दूर करने का आग्रह करते हुए कहा, हमें उन मुद्दों की अनुमति नहीं देनी चाहिए जिन्हें हम एक साथ हल नहीं कर सकते हैं। उन्होंने जी 20 देशों की बैठक में आए सभी देशों के प्रतिनिधियों से दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए ‘मतभेदों से ऊपर उठने’ का आग्रह किया। मोदी ने विकासशील देशों के विकासात्मक लक्ष्यों पर प्रकाश डाला और स्मरण कराया कि ‘खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा’ ग्लोबल साउथ के सामने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से हैं। कोई भी समूह वैश्विक नेतृत्व का दावा उन लोगों की बात सुने बिना नहीं कर सकता है जो इस समूह के फैसलों से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
पीएम मोदी ने जी 20 के मंच पर विकासशील देशों के मुद्दे और उनकी समस्याओं को मजबूती के साथ रखा। वस्तुत: सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने और कई विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले अस्थिर ऋण पर आज ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। ये वे देश हैं जो ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित होने के दौरान खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि भारत की जी 20 अध्यक्षता ने ग्लोबल साउथ को एक आवाज देने की कोशिश की है।
वर्तमान में सबसे कम विकसित देशों के सामने ऋण समस्या का गंभीर संकट मुंह बाये खड़ा है। ऐसे में यह समूह वैश्विक विकास, विकास, आर्थिक लचीलापन, आपदा लचीलापन, वित्तीय स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय अपराध, भ्रष्टाचार, आतंकवाद और खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा की समस्याओं से निपटने में अपनी जिम्मेदारी को कैसे नजरअंदाज कर सकता है। आज इन समस्याओं के हल के लिए ये देश जी 20 की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं।
हम सभी यह जानते हैं कि कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया एक साथ कई चुनौतियों से संघर्ष कर रही है। फरवरी 2022 से प्रारंभ हुए रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से नई – नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। विश्व आज मंदी, जीडीपी में संकुचन और बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है। जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रहा है।
भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने भी अपनी टिप्पणी में कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों, आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करने और चल रहे संघर्षों, ऋण संकट की चिंता और जलवायु घटनाओं के विघटन के प्रभाव का मुद्दा इस बैठक में उठाया। उन्होंने जी 20 सदस्य देशों से बहुपक्षवाद को मजबूत करने और बदलती दुनिया से निपटने के लिए इसे मजबूत करने का आग्रह किया। जयशंकर ने भी संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता का उल्लेख किया जो 1945 से अपरिवर्तित है। उनका कहना था कि 2005 के बाद से, हमने उच्चतम स्तर पर सुधार के लिए भावनाओं को व्यक्त किया। हम जितनी देर इसे टालते रहेंगे, बहुपक्षवाद की विश्वसनीयता उतनी ही क्षीण होती चली जाएगी। जितनी जल्दी वैश्विक निर्णय लेने का लोकतंत्रीकरण किया जाएगा, उतना ही इसका भविष्य बेहतर होता जाएगा।
हालांकि जी 20 विदेश मंत्रियों की यह बैठक रूस-यूक्रेन संघर्ष पर तनाव की छाया के बीच संपन्न हुई जिसमें भाग लेने वाले देश इस मुद्दे पर विभाजित नजर आए। इसीलिए पीएम मोदी ने भारत की जी 20 अध्यक्षता की थीम – एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य – की ओर इशारा किया और जी 20 के मंच से विश्व को यह समझाने का प्रयास किया कि इस व भविष्य में आने वाली हर बैठक को ‘गहरे वैश्विक विभाजन’ से उबारने की जरूरत है और सामान्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक साथ आने की भावना को यहां प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए। इसके बाद इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि भाग लेने वाले देशों के बीच आगे होने वाली बैठकें महत्वाकांक्षी, समावेशी, कार्रवाई उन्मुख होने के साथ-साथ मतभेदों से ऊपर उठकर भी होंगी।