प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने विदेश नीति और कूटनीतिक पहुंच को एक मुकाम तक पहुंचाने के लिए विशेष महत्व प्रदान किया है। पारंपरिक संबंधों को पुनर्जीवित करना, रणनीतिक संबंधों को फिर से स्थापित करना भारतीय कूटनीति की प्राथमिकता बनी।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए जिनमें दिल्ली के अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और प्रमुख पश्चिमी शक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंधों पर बल दिया गया। इसी के साथ-साथ ‘पड़ोसी प्रथम’ यानि नेबर फर्स्ट की नीति को भी प्रमुखता से अपनाया गया। सरकार की कूटनीतिक प्राथमिकता ‘पड़ोसी पहले’ को ध्यान में रखते हुए ही प्रधानमंत्री ने मई 2014 में सभी सार्क देशों के नेताओं को शपथ ग्रहण समारोह में इसीलिए आमंत्रित किया था। यह भारत को एक आत्मनिर्भर आर्थिक शक्ति बनाने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता थी जिस पर पीएम मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से शिद्दत के साथ अमल किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने विदेश नीति और कूटनीतिक पहुंच को एक मुकाम तक पहुंचाने के लिए विशेष महत्व प्रदान किया है। पारंपरिक संबंधों को पुनर्जीवित करना, रणनीतिक संबंधों को फिर से स्थापित करना और विदेशों में रहने वाले भारतीयों तक पहुंचना भारतीय कूटनीति की प्राथमिकता बनी। वसुधैव कुटुंबकम ् के सिद्धांत में विश्वास रखने वाले पीएम मोदी ने कोविड के घोर संकट काल में भी करीब 150 से अधिक देशों को वैक्सीन मुहैया करवाई जो दुनिया भर में वैक्सीन डिप्लोमेसी के नाम से जानी और सराही गई।
विभिन्न देशों से आने वाले राष्ट्र प्रमुखों का भी स्वागत और सम्मान इसी क्रम में किया जाता है जिसकी वजह से उनका लगाव भी भारत के प्रति विशिष्ट रूप से बढ़ता जा रहा है। इस बात की पुष्टि हाल ही में भारत आए कई देशों के राष्ट्र प्रमुखों की यात्राएं भी कर रही हैं जो भारत के साथ आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं तमाम अन्य क्षेत्रों में संबंधों को एक नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं। अपनी यात्रा के दौरान इन सभी नेताओं ने पीएम मोदी के नेतृत्व कुशल व्यवहार की भी खूब प्रशंसा की है। कुछ ऐसे ही लगाव और रिश्तों की समझ जापान और भारत के बीच भी दिखती है। ऐसा संबंध कुछ ही देशों के साथ परवान चढ़ता है। भारत दौरे पर आए जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की द्विपक्षीय बातचीत में संबंधों की प्रगाढ़ता साफ-साफ परिलक्षित हुई। क्षेत्रीय मुद्दों, खासकर हिंद–प्रशांत क्षेत्र में शांति को लेकर दोनों देशों की सोच काफी सुस्पष्ट है। दोनों देशों के नेताओं के बीच हिंद–प्रशांत क्षेत्र की समृद्धि और स्थिरता संबंधी समस्याओं एवं चुनौतियों से निपटने की रणनीति पर भी विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। हिंद–प्रशांत का इलाका एक ऐसा क्षेत्र है जहां चीन की दादागीरी को लेकर न सिर्फ भारत और जापान परेशान तथा चिंतित हैं बल्कि हिंद–प्रशांत क्षेत्र के अन्य देश भी चिंताग्रस्त हैं। चीन की विस्तारवादी सोच के कारण यह इलाका हाल के वर्षों में सुर्खियों में रहा है और यहां हलचल बढ़ी है। भारत हमेश से यही चाहता है कि यह इलाका समृद्ध। लिहाजा‚ यहां मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल सकारात्मक रूप से और क्षेत्र के छोटे देशों की बेहतरी के लिए किया हो। जापान हिंद–प्रशांत क्षेत्र का सबसे अहम देश है; इसलिए उसकी इस क्षेत्र में बड़़ी भूमिका है। भारत का साथ मिलने से निश्चित तौर पर जापान का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह यहां की समृद्धि को और ज्यादा व्यापक स्वरूप दे सकेगा। हिंद–प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल समेत कई समस्याओं का हल भारत कर सकता है। निश्चित रूप से चीन के दबदबे को केवल भारत ही घटा सकता है। जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो का भारत दौरा उस वक्त हुआ है, जब दोनों ही देश बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी निभा रहे हैं। ये हम सबको पता है कि इस वक्त भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी20 की अध्यक्षता कर रहा है, वहीं जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों के समूह जी7 की अध्यक्षता कर रहा है। वैश्विक नजरिए से दोनों देशों के लिए इन समूहों की अध्यक्षता बेहद महत्वपूर्ण है।
भारत के साथ हर देश अपने संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है। इसी कड़ी में दुनिया के सबसे विकसित देशों में से एक इटली का भी नाम जुड़ गया है। यूरोपीय देश इटली की प्रधानमंत्री ज्यॉर्जिया मेलोनी भी पिछले दिनों भारत यात्रा पर थीं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के संबंधों के नए अध्याय की शुरुआत हुई। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इटली की प्रधानमंत्री ज्यॉर्जिया मेलोनी के बीच गुरुवार (2 मार्च) को दिल्ली के हैदराबाद हाउस में द्विपक्षीय वार्ता हुई। इसमें दोनों ही नेताओं ने भारत-इटली साझेदारी को रणनीतिक साझेदारी का दर्जा देने का निर्णय किया। अब भारत और इटली सामरिक साझेदार हो गए हैं। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के साथ भी भारत की 75 साल पुरानी दोस्ती है। ऑस्ट्रेलिया में लेबर पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री अल्बनीज पहली बार भारत आए। उनके दौरे का मकसद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूती देना था। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री अल्बनीज के साथ व्यापार और पर्यटन मंत्री डॉन फैरेल और संसाधन मंत्री मेडेलीन किंग के अलावा एक उच्च-स्तरीय कारोबारी प्रतिनिधिमंडल भी भारत आया और मुख्य रूप से व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने पर सहमति बनी। निश्चित तौर पर इन देशों की दोस्ती न केवल नया आयाम गढ़ेगी‚ बल्कि वैश्विक संबंधों को भी नए सिरे से परिभाषित करेगी।