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नई दिल्ली। यूनिवर्सिटी ऑफ लंडन के एसोसिएट प्रोफेसर अलसडेयर पिंकर्टन ने एक अध्ययन किया है। इसमें उन्होंने 1947 में भारत की आजादी से लेकर वर्ष 2008 तक बीबीसी के कवरेज का बारीकी से विश्लेषण किया है। उन्होंने इस स्टडी के आधार पर कहा कि बीबीसी दक्षिण एशिया की भू-राजनैतिक और आर्थिक नजरिए से रिपोर्टिंग करते वक्त भारत के खिलाफ जमकर एजेंडा चलाता रहता है। पिंकर्टन ने बीबीसी पर प्रॉपगैंडा रिपोर्टिंग के आरोपों की सच्चाई जानने के लिए ही स्टडी की थी। उन्होंने अपने अध्ययन के नतीजों में न केवल यह आरोप सही पाया बल्कि यहां तक कहा कि बीबीसी मूलतः उपनिवेशवादी और नव-उपनिवेशवादी सोच से ग्रसित होने के कारण ऐसा करता है। फर्स्टफोस्ट.कॉम में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पिंकर्टन की स्टडी के हवाले से कहा गया है कि शीत युद्ध के वर्षों में बीबीसी का भारत विरोधी प्रॉपगेंडा तो शबाब पर था।
बीबीसी ने खासकर मुश्किल दौर में भारत के खिलाफ पूरी शिद्दत से दुष्प्रचार किया। 1965 में पाकिस्तान युद्ध के दौरान तो पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के लिए बीबीसी पर भारत में बैन लगा दिया गया था लेकिन बीबीसी ने सबक लेने के बजाय अपना प्रॉपगेंडा और तेज कर दिया। इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो बीबीसी ने एक हार्डकोर खालिस्तानी आतंकी को प्लेटफॉर्म दिया। भारत में बीबीसी के इस रवैये के खिलाफ इस कदर जनभावना भड़की कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को मोर्चा संभालना पड़ा। ब्रिटिश पीएम ने तब बीबीसी से कहा कि वो माफी मांगे।
महज 15 वर्ष पहले 26/11 के मुंबई अटैक से पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई थी सबसे बड़े लोकतंत्र की आर्थिक राजधानी पर भीषण आतंकी हमले से विश्व स्तब्ध था। पाकिस्तान से चोरी-छिपे आए आतंकियों ने निर्दोष लोगों के खून की होली खोली, तब बीबीसी अपनी रिपोर्टर में इन्हें बस बंदूकधारी बताया था। ठीक तीन साल पहले 7 जुलाई, 2005 को लंदन पर हमला हुआ तो बीबीसी हमलावरों को आतंकवादी कह रहा था। इसलिए, अगर कोई बीबीसी का हवाला देकर पत्रकारों और पत्रकारिता की निष्पक्षता की बात करता है तो उसे तथ्यों का आईना देखने की जरूरत है। उसने 2016 की रिपोर्टिंग में आतंकी बुरहान वानी को ‘युवा करिश्माई लड़ाका’ कहा। फिर 2019 में जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया तो बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘कैसे कई कश्मीरियों के लिए आर्टिकल 370 ही भारत के साथ जुड़े रहने का मुख्य आधार था। बीबीसी ने 2020 के दिल्ली दंगों, नागरिकता संसोधन कानून विरोधी प्रदर्शनों, किसान आंदोलन जैसे गंभीर मुद्दों के दौरान भी खूब दुष्प्रचार किया।
किसी भी हद तक जा सकते हैं टुकड़े-टुकड़े गिरोह के लोग
नई दिल्ली। बीबीसी की पीएम नरेंद्र मोदी पर बनाई डॉक्यूमेंट्री को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने कहा है कि देश में कुछ लोग बीबीसी को भारत के सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं। वे अपने मकसद के लिए, आकाओं को खुश करने के लिए देश की गरिमा और छवि को किसी भी हद तक कम करने को तैयार रहते हैं।किरन रिजिजू ने अपने ट्वीट में कहा कि देश में अल्पसंख्यक समेत हर समुदाय सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रहा है। कुछ क्षुद्र मानसिकता वाले लोगों द्वारा भारत के अंदर या बाहर चलाए गए दुर्भावनापूर्ण अभियानों से भारत की छवि कभी खराब नहीं हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की आवाज 1.4 अरब भारतीयों की आवाज है। भारत में कुछ लोगों का औपनिवेशिक नशा अभी उतरा नहीं है। वे लोग बीबीसी को भारत के सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं। वैसे भी इन टुकड़े-टुकड़े गिरोह के सदस्यों से कोई बेहतर या उम्मीद नहीं की जा सकती। इनका उद्देश्य केवल भारत को कमजोर करना है।
मोदी भगवान शंकर की तरह 18-19 साल विषपान करते रहे : शाह
अमित शाह कह चुके हैं कि तब की गुजरात सरकार पर लगाए सभी आरोप पॉलिटिकली मोटिवेटेड थे। जिन लोगों ने भी मोदी जी पर आरोप लगाए थे, उन्हें भाजपा और मोदी जी से माफी मांगनी चाहिए। शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने हमेशा न्यायपालिका में विश्वास रखा है। मोदी जी भगवान शंकर की तरह 18-19 साल तक विषपान करते रहे।
पूर्व जजों, नौकरशाहों ने खोला मोर्चा
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर चल रहे विवाद के बीच सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के दिग्गजों सहित 302 दिग्गजों ने हस्ताक्षर करके बीबीसी की डाॅक्यूमेंट्री की तीखी निंदा करते हुए कड़ा बयान जारी किया। बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, पूर्व गृह सचिव एल.सी. गोयल, पूर्व विदेश सचिव शशांक, पूर्व रॉ प्रमुख संजीव त्रिपाठी और एनआईए के पूर्व निदेश योगेश चंद्र मोदी शामिल हैं।
यूनाइटेड हिंदू फ्रंट की भी आपत्ति
यूनाइटेड हिंदू फ्रंट नाम के संगठन ने भी बीबीसी की कड़ी भर्त्सना की। फ्रंट के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जय भगवान गोयल ने कहा कि बीबीसी जानती है कि अगर उसे विश्व भर में चर्चा में आना है, तो उसे मोदी के ही नाम का सहारा लेना होगा। बाकी जो भी कुछ दुष्प्रचार करने की कोशिश वह कर रही है, वह उस बीबीसी की साम्राज्यवादी सोच का प्रतिबिंब है, जिसके खुद अपने देश से पैर उखड़ते जा रहे हैं। बीबीसी पर दो भाग वाली सीरीज वस्तुस्थिति से कोसों दूर है।
बीबीसी ने क्या सफाई दी?
उधर बीबीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपनी विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री का बचाव किया था। बीबीसी के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह एक ‘गंभीरता से शोध की गई’ डॉक्यूमेंट्री है जिसमें अहम मुद्दों को उजागर करने की कोशिश की गई है। प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि डॉक्यूमेंट्री पर उच्चतम संपादकीय मानकों के अनुसार गहन शोध किया गया था लेकिन अब बीबीसी के इस दावे पर ढेरों सवाल उठ चुके हैं और उसकी विश्वसनीयता संदेह के दायरे में है।