राजनीति में यूं तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलना कोई नई बात नहीं लेकिन जब आलोचना से ऐसा लगने लगे कि वह सामान्य शिष्टाचार की लक्ष्मण रेखा पार करने लगी है तो मामला संवेदनशीलता की ओर बढ़ने लग जाता है। ऐसा ही कुछ विवाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अभी हाल ही में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और लंदन में दिए गए वक्तव्यों के संदर्भ में हो रहा है। राहुल के वक्तव्यों को लेकर जहां सत्तापक्ष हमलावर है वहीं ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस को राहुल के इस प्रकार के वक्तव्यों से कोई फायदा मिलने के स्थान पर नुकसान अधिक होने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ गई हैं। अकेले राहुल ही नहीं बल्िक कांग्रेस के कई अन्य वरिष्ठ नेता भी अनर्गल बयानबाजी कर चुके हैं। मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान में जाकर विवादास्पद बयान दिया था। पार्टी अध्यक्ष खड़गे व प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी ऐसी टिप्पणियां की जिन्हें जनमानस ने पसंद नहीं किया।
भाजपा की मांग है कि विदेशी धरती पर भारत के कथित अपमान को लेकर राहुल गांधी माफी मांगें। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने कहा कि राहुल गांधी ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो देश के खिलाफ हो, इसलिए उनकी तरफ से माफी मांगे जाने का सवाल ही नहीं उठता है। राहुल के बयान की वजह से संसद में गतिरोध के चलते 140 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि ऐसे दर्जनों बिलों पर कोई सार्थक और सारगर्भित बात ही नहीं कर पा रहे। भाजपा ने पहले ही राहुल के बयान को देश की अस्मिता से जोड़ रखा है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो कह ही दिया कि ”कैंब्रिज क्राइज और लंदन लाइज”। अब हाल यह है कि राजनीति के गलियारों में दिग्गजों ने इस बयान के नफा-नुकसान का गुणा-भाग भी करना प्रारंभ कर दिया है और यह कहा जा रहा है कि विपक्ष को जो मुद्दा अडानी के रूप में मिला था, उसको राहुल के बयान ने निस्तेज कर दिया है। जल्द ही 2024 के लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और इसके पूर्व भी कुछ राज्यों में चुनाव आसन्न हैं। भारत की राजनीति में इस वक्त कांग्रेस की हालत उस डूबती हुई नाव की तरह होती जा रही है जिस पर कोई भी सवार होना नहीं चाहता। इन सब बातों के बावजूद पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी राजनीति को लेकर उतना संजीदा नहीं नजर आ रहे और ‘अपनी डफली अपना राग’ ही बजाने के मूड में हर समय नजर आते हैं।
2 मार्च को त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधानसभा चुनावों का नतीजा आना था पर उससे पहले ही राहुल गांधी देश से बाहर चले गए। पहले भी वह कई बार ऐसा कर चुके हैं कि जब पार्टी को उनकी आवश्यकता देश के सियासी पिच पर होती है तो उस वक्त राहुल गांधी विदेश में नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ आग उगल रहे होते हैं।
राहुल गांधी को संभवत: ऐसा लगता है कि विदेशी धरती पर अगर वे मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करेंगे तो इससे कांग्रेस को लेकर भारत में संभावनाएं बेहतर होंगी जबकि हर बार होता इसका बिल्कुल उल्टा है। विगत 10 वर्षों से यही होता आ रहा है पर राहुल गांधी इससे कोई सबक नहीं ले पाए। जब राहुल गांधी कैम्बि्रज यूनिवर्सिटी में बोले तो क्या उनको यह आभास नहीं था कि विगत कुछ वर्षों से चीन के संदर्भ में भारतीय जनमानस किस तरह की भावनाएं रखता है। यह स्वत: ही स्पष्ट और जगजाहिर है।
आज जनता के बीच कांग्रेस की धूमिल होती छवि का ही यह परिणाम है कि शनै:-शनै: बाकी विपक्षी दल भी कांग्रेस से किनारा करते नजर आ रहे हैं। चाहे ममता बनर्जी हों या फिर अखिलेश यादव या फिर चंद्रशेखर राव। विपक्षी दलों के नेताओं में ये धारणा मजबूत हो रही है कि कहीं कांग्रेस से हाथ मिलाने के फेर में उन्हें अपने ही राज्य में नुकसान न उठाना पड़ जाए। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने एलान कर दिया कि 2024 के चुनाव में वह किसी के साथ हाथ नहीं मिलाने वाली। उनके कहने का सीधा मतलब है कि उनकी पार्टी कांग्रेस से दूर ही रहेगी। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर राहुल गांधी ही विपक्ष का चेहरा रहे तो वोट मिलना नामुमकिन सा है। ममता बनर्जी मानती हैं कि राहुल गांधी ही नहीं, कांग्रेस के अन्य नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए टीआरपी बढ़ाते हैंैं।
कांग्रेस के साथ गठबंधन से होता है नुकसान
कांग्रेस से गठबंधन होने के नुकसान का ताजा उदाहरण त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं। इसमें भाजपा को हराने के लिए सीपीएम, कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी लेकिन उलटा उसे नुकसान उठाना ही पड़ा। इसी तरह का तजुर्बा अखिलेश यादव को भी हो चुका है। अखिलेश यादव ने 2017 में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के साथ जोड़ी बनाई मगर क्या हुआ, नतीजा हम सब जानते हैं। गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी 331 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 47 सीटें ही जीतने में कामयाब हुई। उसका वोट शेयर भी करीब 8 फीसदी कम हो गया था। इससे सबक लेते हुए अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से दूरी बना ली। इसका फायदा भी मिला और उनकी पार्टी ने 2017 के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन करते हुए 111 सीटों पर जीत दर्ज की। समाजवादी पार्टी के वोट शेयर में भी 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ। संभवत: इसीलिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मैनपुरी उपचुनाव जीतने के बाद अब लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर ‘थर्ड फ्रंट’ की राजनीति का हिस्सा बनने की तैयारी शुरू कर दी है। सपा मुखिया अखिलेश ने कोलकाता में कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, वह अपनी भूमिका खुद तय करे।
हालत बद से बदतर
ये भी कड़वा सच है कि गत 10 साल में कांग्रेस की स्थिति लगातार बद से बदतर होती गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उतनी भी सीट नहीं ला पाई कि लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा तक हासिल कर पाए। इसके बावजूद राहुल गांधी सोच-समझ कर न बोलने के अपने स्वभाव को बदल नहीं पा रहे। अब शायद राहुल या कांग्रेस के अन्य नेता क्या इतना भी नहीं समझते कि किसी भी देश का प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मंच पर उस देश का प्रतिनिधित्व करता है और पीएम नरेंद्र मोदी तो ऐसे नेता हैं जो ख्याति में तीसरी बार विश्व के दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हुए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल गांधी के लंदन वाले बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कर्नाटक में कहा कि दुनियाभर में भारत की छवि खराब करने की कोशिश हुई है। उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा कि एक अंतरराष्ट्रीय मंच से देश को नुकसान पहुंचाया गया है। उन्होंने कहा कि दुनिया की कोई भी ताकत भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को नहीं हिला सकती। बहरहाल, इस वर्ष राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देखना होगा कि वहां के चुनावों पर राहुल गांधी के लंदन वाले बयानों का क्या असर होता है लेकिन जिस तरह लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया, उससे भाजपा के तेवर का अंदाजा तो लग ही रहा है।