प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो कदम उठाए, उनमें ‘मेक इन इंडिया’ और ‘ग्लोबल फॉर लोकल’ का डंका अब देश में ही नहीं, विदेश में भी बजने लगा है। लंबे समय तक हथियारों का प्रमुख आयातक देश रहा भारत अब तेजी से रक्षा क्षेत्र में निर्यातक के रूप में अपनी भूमिका तेजी से बढ़ा रहा है। देश की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के पास 84 हजार करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं। वहीं, 50 हजार करोड़ के अन्य ऑर्डर पाइपलाइन में हैं। इस संबंध में एचएएल के अध्यक्ष व महानिदेशक सीबी अनंतकृष्णन ने बेंगलुरू में हुए एयरो इंडिया 2023 में ये आंकड़े पेश किए जो सफलता की नई कहानी कह रहे हैं। साथ ही अनंतकृष्णन ने यह भी बताया कि एचएएल के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस को खरीदने में भी कई देशों ने रुचि दिखाई है और चल रही बातचीत उत्साह बढ़ाने वाली है।
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन का असर और उसी का ही परिणाम है। एचएएल अब तक हुए खरीद अनुबंधों और पाइपलाइन में मौजूद ऑर्डर, दोनों के लिहाज से अच्छी स्थिति में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विजन से एचएएल को काफी फायदा हुआ। सैन्य विमानों के वैश्विक बाजार में एचएएल ने काफी रुचि जगाई है और जल्द ही बड़े ऑर्डर नजर आएंगे, ऐसा विश्वास एचएएल के अध्यक्ष व महानिदेशक सीबी अनंतकृष्णन ने भी व्यक्त किया है। एचएएल के डायरेक्टर (ऑपरेशंस) जयदेव ईपी का कहना है कि कंपनी का लक्ष्य है कि अगले कुछ वर्षों में निर्यात 2.5 लाख करोड़ तक पहुंचाया जा सके। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अगले दो वर्ष में रक्षा निर्यात तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। तेजस के निर्यात के लिए भी सरकार अपनी ओर से कूटनीतिक प्रयास कर रही है। यहां यह जिक्र करना भी समीचीन होगा कि चार देशों ने भारत निर्मित तेजस विमान में रुचि दर्शाई है जिनको को एचएएल यह विमान बेचेगा। अर्जेंटीना ने 15 और मिस्र ने 20 तेजस विमान खरीदने में रुचि दिखाई है। बोत्सवाना और मलेशिया तेजस की खरीद में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। अगर सब कुछ ठीक-ठाक चला तो शीघ्र ही इन देशों के आसमान में भारत में निर्मित विमान गरजते नजर आएंगे। खबर तो यह भी आ रही है कि एचएएल अपने हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर बेचने के लिए भी फिलीपींस के साथ भी बातचीत कर रही है।
इस पांच दिवसीय एयरो शो-एयरो इंडिया 2023 का उद्घाटन करते हुए 14 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा था कि इस आयोजन में दुनिया भर के डिफेंस सेक्टर से जुड़े लोगों की दिलचस्पी जिस तरह से बढ़ रही है, वह भारत के लिए बहुत अच्छा संकेत है। इस बार भी 100 से ज्यादा देशों ने इसमें अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। देश-विदेश के 700 से ज्यादा प्रदर्शनकर्ताओं ने इसमें हिस्सा लिया। दरअसल ऐसे आयोजनों का लाभ यह मिलता है कि इसमें इंडस्ट्री के अलग-अलग पक्षों से वास्ता रखने वाले लोगों का सम्मिलन होता है। वे एक-दूसरे की जरूरतों और अपेक्षाओं से परिचित होते हैं और फिर उसे पूरा करते हुए औद्योगिक संभावनाओं का प्रसार करते हैं जिससे इस क्षेत्र के विकास को और विस्तार मिलता है। यही वजह है कि रक्षा निर्यात क्षेत्र में अपेक्षाकृत नया होने के बाद भी भारत ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से अपनी बढ़त बनाई है और यह बात गौर करने लायक है। इससे यह भी साबित होता है कि भारत का संकल्प यही है कि वह जल्द से जल्द अपनी रक्षा जरूरतों के लिहाज से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े। तभी भारत रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के बाजार में अन्य देशों की जरूरतें पूरी करते हुए प्रमुख निर्यातक देश के रूप में अपना स्थायी मुकाम बना पाएगा। वर्तमान समय में भारत 75 से अधिक मित्र देशों की फौज को विभिन्न प्रकार के रक्षा उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है। डिफेंस के क्षेत्र में भारत ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के रास्ते कदम तीव्र गति से बढ़ा रहा है। ‘धनुष’, ‘तेजस’ व टी-90 टैंक जैसे दर्जनों स्वदेशी रक्षा उत्पादों का डंका अब रक्षा उपकरण बाजार में बजने लगा है। एसयू-30 एमके1, चीता हेलिकॉप्टर, एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर, डोर्नियर डीओ-228, हाई मोबिलिटी ट्रक, आईएनएस कलवारी, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस चेन्नई और एंटी-सबमरीन वारफेयर कार्वेट (एएसडब्लूसी) जैसे उपकरण अब ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ से जुड़ी परियोजनाओं की गाथा कह रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो इस दिशा में हुई प्रगति इस बात की पुष्टि भी करती है। 2017 में देश का डिफेंस एक्सपोर्ट केवल 1520 करोड़ रुपये था, वह 2021-22 में 14000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। ऐसे में अपने उद्घाटन भाषण में पीएम मोदी ने वर्ष 2024-25 तक इसे 5 अरब डॉलर यानी 41,000 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचाने का जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य दिया है, वह अपने आप में खासा महत्वपूर्ण है। इसे पूरा करने के लिए हमें अपनी कमजाेरियों और कमियों को भी तीव्र गति से दूर करना होगा। तभी भारत कम समय में रक्षा क्षेत्र के निर्यात में सबसे आगे हो पाएगा।