ललित दुबे
वाशिंगटन। विविध कारणों से चीन को पछाड़ कर भारत दुनिया का बड़ा दवा आपूर्तिकर्ता बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए कई देश अपनी आपूर्ति श्रृंखला और स्रोतों में बड़े बदलाव कर रहे हैं। हिनरिक फाउंडेशन के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत-अमेरिका की दोस्ती और चीन के स्वाभाविक प्रतिस्पर्धी के तौर पर भारत दुनिया को दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला के लिहाज से बेहतर विकल्प दे सकता है। कई अमेरिकी कंपनियां चीन छोड़कर भारत आ रही हैं। यहां उन्हें बेहतर माहौल दिखाई दे रहा है।
बदल रहे समीकरण
मित्र देशों के साथ आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ाने को फ्रेंडशोरिंग कहा जाता है। फाउंडेशन के मुताबिक, भारत अमेरिका के लिए उपयुक्त फ्रेंडशोरिंग गंतव्य है, क्योंकि दोनों देश लोकतांत्रिक और तमाम सामाजिक मूल्य साझा करते हैं। इसके अलावा दोनों वैश्विक स्तर पर रणनीतिक साझेदार हैं। तमाम क्षेत्रों में दोनों देशों के साझा हित हैं। हेनरिक फाउंडेशन वैश्विक अनुसंधान और शिक्षा कार्यक्रमों के जरिये पारस्परिक लाभप्रद और स्थायी वैश्विक व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है।
– कई अमेरिकी कंपनियां चीन छोड़कर भारत आ रहीं
– कई देश अपनी आपूर्ति श्रंखला व स्रोतों को बदल रहे
कुछ समस्याएं दूर करने की जरूरत
अमेरिकी अधिकारियों के बीच भारत के साथ फ्रेंडशोरिंग को अनियंत्रित विदेशी निवेश और उद्योगों की लागत और कथित कमियों से दूर एक रणनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, इस संबंध में हेनरिक फाउंडेशन के अखिल रमेश और रॉब यॉर्क ने शोध पत्र पेश किया। इसमें कहा गया है कि आर्थिक उदारीकरण, दिल्ली-वाशिंगटन के बढ़ते गठबंधन और दुनिया की फार्मेसी के रूप में भारत की ख्याति और कोविड महामारी ने फार्मा उत्पादों के लिहाज से अमेरिका के लिए भारत को फ्रेंडशोरिंग का प्रमुख गंतव्य बना दिया है। हालांकि, भारत में अपर्याप्त नियामक निगरानी, घटक आपूर्ति के लिए चीन पर निर्भरता और निर्माण से संबंधित पर्यावरणीय क्षति से उत्पन्न होने वाली समस्याएं बाधक हैं।
इस तरह पीछे होगा चीन
चीन ने पिछले दो दशकों में अपने फार्मास्युटिकल उद्योग क्षेत्र को आर्थिक मदद देकर मजबूत किया है। हालांकि, दुनिया में दवाओं के सबसे बड़े खरीदार के रूप में अमेरिका के पास रणनीतिक बढ़त बनी हुई है। आपूर्ति श्रृंखला को बदलने के लिए, अमेरिका दवा की खपत के लिए अपने बाजार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। अगर अमेरिका जापान और फ्रांस को इस फ्रेंडशोरिंग में शामिल करने के लिए राजी कर लेता है, तो आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण में निश्चित बढ़त हासिल हो सकती है।