नई दिल्ली। पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। यदि 1.5 डिग्री और तापमान बढ़ा तो भारत में बेमौसम व तेज बारिश 40 से 50 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
विश्व के हजारों वैज्ञानिकों द्वारा यूएन के जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर) में यह दावा किया गया है। सोमवार को इस रिपोर्ट का चौथा व अंतिम हिस्सा एआर-6 के रूप में जारी हुआ। रिपोर्ट में नये वैज्ञानिक खुलासे नहीं किए गए, लेकिन पिछली रिपोर्ट्स के आधार पर भारत सहित पूरी दुनिया में बन रहे हालात और चुनौतियों का उल्लेख है।
जलवायु परिवर्तन से नुकसान को अपूरणीय बताते हुए इसे मानव व पूरी पृथ्वी पर फलते-फूलते जीवन के लिए बड़ी विपदा करार दिया गया। मौसम के चरम हालात, प्राकृतिक आपदाओं, प्रजातियों के खात्मे की आशंका जताते हुए पूरी दुनिया को तत्काल कड़े कदम उठाने की जरूरत बताई गई। यह रिपोर्ट औसत तापमान 1.5 डिग्री बढ़ने से रोकने के उपायों पर आधारित आखिरी आईपीसीसी रिपोर्ट है। इसके बाद 2030 तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आएगी।
– आईपीसीसी की मूल्यांकन रिपोर्ट का अंतिम हिस्सा जारी
– जलवायु परिवर्तन पूरी पृथ्वी पर बड़ी विपदा करार दिया गया
चरम मौसमी हालात से नुकसान का आकलन
प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान का भी आकलन किया गया है। इसमें चेन्नई में 2015 में आई बाढ़ से 300 करोड़ डॉलर के नुकसान का अनुमान था। वहीं 2020 में प. बंगाल व बांग्लादेश में आए अम्फन चक्रवात से 1350 करोड़ डॉलर का नुकसान आंका गया।
जलवायु परिवर्तन की 5 स्थितियां
इनमें मानव व जीवों के लिए असामान्य व खतरनाक वातावरण बनना, चरम मौसमी घटनाएं होना, बिगड़े वातावरण का क्षेत्र में विस्तृत दुष्प्रभाव, बेहद बड़े स्तर की घटनाओं का होना शामिल है।
भारत के बड़े भूभाग में बाढ़
रिपोर्ट के अनुसार, तापमान 1.5 से 2 डिग्री बढ़ने पर भारत के विस्तृत भूभाग में बाढ़ का खतरा पैदा हो जाएगा।
जंगलों पर खतरे
2030 तक भारत के 46फीसदी जंगल और 2080 तक 54 प्रतिशत जंगल आग व सूखे की जद में होंगे। ज्यादा खतरा हिमालय व पश्चिमी घाट के जंगलों पर है।
समुद्र में 80 फीसदी जीवन पर खतरा
तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने पर हिंद महासागर में 80 प्रतिशत से अधिक जीवों के लिए वातावरण खतरनाक हो जाएगा। भारत व प्रशांत महासागर में 2,584 मूंगा चट्टानों के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि इनमें से 17 प्रतिशत को संरक्षण की जरूरत है, 28 प्रतिशत खत्म होने के चरण में पहुंच चुकी हैं और 54 प्रतिशत को बचाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। समुद्र का स्तर बढ़ने पर किनारों पर बसे शहरों में भूजल के खारेपन से पेयजल संकट भी आ सकता है। केरल में तटीय क्षेत्रों व सुंदरबन के इलाकों में ऐसा देखा गया है। इससे मिट्टी को भी नुकसान हो रहा है।
भारत की घोषणा का समर्थन करती रिपोर्ट
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने रिपोर्ट का स्वागत कर कहा कि इसमें जलवायु परिवर्तन को मानवता के लिए प्रमुख खतरों के रूप में देखा गया है। नीति निर्माताओं के लिए बनी यह रिपोर्ट भारत द्वारा क्लाइमेट जस्टिस और समानता की घोषणा को भी समर्थन देती है। यादव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन कम करने के लिए विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय सहयोग दिया जाता है, लेकिन इस वक्त दी जा रही राशि नाकाफी है। अमेरिका ने 10 हजार करोड़ डॉलर के सहयोग का वादा पूरा नहीं किया। रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर वित्तीय सहयोग बढ़ाकर विकासशील देशों को तत्काल मुहैया करवाने पर जोर दिया गया है।