भारत को जी20 की अध्यक्षता मिलने के बाद देश में इसकी बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। तमाम देश कोरोना काल से लेकर अभी तक तमाम वैश्विक समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस दौरान वैश्विक ऋण में वृद्धि हुई, अनेक देशों में विकास दर कमजोर हुई, मुद्रास्फीति बढ़ी है और रोजगार का संकट मुंह बाए खड़ा है। यूक्रेन-रूस युद्ध उसमें आग में घी का काम कर रहा है।
पश्चिमी हों अथवा यूरोपीय या कोई अन्य देश, सभी इससे उपजे संकट से दो चार हो रहे हैं। ऐसे में जी20 के सभी सदस्य देशों ने आजीविका के साथ-साथ इस प्रकार के संकटों से उबरने के लिए समावेशी व्यवस्था की ओर आगे बढ़ने का संकल्प व्यक्त किया है। इसीलिए भारत में होने वाली बैठकों में मुख्य रूप से वैश्विक विकास, महिला विकास, व्यापार, भ्रष्टाचार, आर्थिक-वित्तीय, रोजगार, संस्कृति, चिकित्सा, शिक्षा आदि विषयों को शामिल किया गया है। इसमें चालीस देशों के शेरपा हिस्सा ले रहे हैं। पूरे साल देश के पचपन स्थानों पर ऐसी कुल दो सौ बैठकें होनी तय हैं। इस कठिन दौर में मौजूदा हालात से निपटने के लिए जो संकल्प किया गया है उससे स्वाभाविक ही स्थितियों में बेहतरी आने की उम्मीद बढ़ी है।
आज जरूरत इस बात की है कि हमें आपदा को अवसर में बदलने की कला में माहिर होना पड़ेगा। जी20 की पहली बैठक में भारत के शेरपा एवं नीति आयोग के अध्यक्ष रहे अमिताभ कांत ने भी दोहराया है कि आपदा को अवसर में बदलने की दिशा में सोचने से ही संकटों से जल्दी उबरा जा सकता है। जी20 देशों के साथ जब परस्पर व्यापार-वाणिज्य के रिश्ते मजबूत होंगे तो दुनिया में उसका असर स्पष्ट परिलक्षित होगा। स्वाभाविक है कि भारत की आर्थिक विकास दर पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव नजर आएगा। अभी तो भारत भी महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, लोगों को गरीबी रेखा से उबारने जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। जी20 देशों के साथ परस्पर तालमेल से इस दिशा में बेहतर नतीजे हासिल करना भारत के लिए कोई बड़ी चुनौती साबित नहीं होगा। जी20 में मिली जिम्मेदारी हो या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता, दोनों जगह भारत के नाम की गूंज है।
विगत दशकों में किसी भी देश ने ऐसी अध्यक्षता को इतनी गंभीरता से नहीं लिया है। भारत अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों को गंभीरता से ले रहा है और वैश्विक मंचों पर बड़ा अथवा सकारात्मक बदलाव चाहता है ताकि संपूर्ण विश्व का समग्र विकास हो। संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी राजदूत रुचिरा कंबोज ने भी जोर देकर कहा है कि हमारा देश बदल रहा है और तेजी से सुधार भी हो रहा है। भारत दुनिया की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है, इसे कोरोना काल में सबने देखा है। अब भी भारत में असंख्य कमियां हैं किंतु उसे विकास की डगर पर बहुत दूर जाना है। रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से बिल्कुल सही संदेश दिया है कि हमारी विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धांत मानवता-केंद्रित है और आगे भी यही रहेगा। बेशक, अब समय आ गया है जब भारत अपनी ताकत को हर तरह से बढ़ाए और दुनिया में सबसे आदर्श आवाज बन जाए। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 की थीम और उसका ध्येय ‘वसुधैव कुटुम्बकम्` या “एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य”- महा उपनिषद के प्राचीन संस्कृत पाठ से लिया है। पीएम मोदी जी20 की अध्यक्षता को भारत के लिए बड़े अवसर के रूप में देख रहे हैं। वह इस अति महत्वपूर्ण संगठन के माध्यम से दुनिया को संदेश देना चाहते हैं। विश्व में शांति और सौहार्द का चिंतन भारत में ही किया गया। यह भारत है जिसने ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्` का विचार दिया। मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से कहा भी था कि यह युद्ध का युग नहीं होना चाहिए। जब भारत दुनिया को यह संदेश देने की तैयारी कर रहा है तब प्रतीक चिन्ह में कमल को स्वीकार करना ही उचित था। यह समृद्धि के साथ प्रकृति संरक्षण का भी संदेश देता है।
दुनिया के कई बड़े उभरते बाजार भी जी20 संगठन में शामिल हैं और यह समूह दुनिया की दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। दुनिया की पचासी फीसद जीडीपी, अठहत्तर फीसद वैश्विक व्यापार और नब्बे फीसद पेटेंट जी20 देशों के पास है। कोरोना के कठिन दौर में भी भारत ने जिस प्रकार अपनी अर्थव्यवस्था को संभाले रखा और विकास की गति बरकरार रखी; वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसी दौरान आर्थिक प्रगति में ब्रिटेन को पछाड़ कर भारत उससे आगे निकल गया। किसी भी देश के लिए अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसीलिए आज दुनिया के तमाम देश आर्थिक विकास को लेकर भारत की ओर नजरें उठाए देख रहे हैं और उन्हें भारत से समाधान मिलने की उम्मीदें हैं क्योंकि भारत ही एक ऐसा देश है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्` यानि संपूर्ण विश्व को अपना परिवार मानता है।