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चीन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जरूरी

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चीन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जरूरी

by Blitzindiamedia
December 16, 2022
in दृष्टिकोण
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चीन के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जरूरी

भारत और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि दोनों ही देशों के बीच बातचीत का सिलसिला भी जारी है लेकिन ताजा घटनाक्रम बड़ी चिंता पैदा कर रहा है। एशिया या यूं कहें कि दुनिया के दो बड़े ताकतवर देशों के बीच सीमा पर ऐसा तनाव न सिर्फ एक दूसरे के लिए बल्कि दुनियाभर के लिए खतरनाक है। चीन ने एक बार फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बदलने की नाकाम कोशिश की है। इस बार उसने अरुणाचल प्रदेश के तवांग को निशाना बनाया है। एलएसी को लेकर चीन की सामरिक व रणनीतिक चाल बिल्कुल स्पष्ट है। वह किसी भी तरह सीमावर्ती इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत बनाकर उनकी मौजूदा यथास्थिति को न सिर्फ बदलना चाहता है बल्कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जहां-जहां हम बेहतर स्थिति में हैं, वहां-वहां अपनी पकड़ बनाकर खुद को और सुदृढ़ करना चाहता है।

अब तो जरूरी सा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के खिलाफ भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बारे में जल्द से जल्द फैसला लें, भले ही वो कूटनीतिक प्रकृति वाली ही क्यों न हो।

चीन की इस विस्तारवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का वक्त आ गया है। अगर अब इसे नहीं रोका गया तो यह भारत जैसे शांतिप्रिय देश के लिए तो खतरनाक है ही; पड़ोसी मुल्कों व विश्व के लिए भी चीन एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। अत: अब केवल भारत-चीन संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के हिसाब से सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों को लेकर भी बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक घड़ी आ चुकी है। भारत इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से आगे का रास्ता पूरे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के हिसाब से भी अहम हो जाता है।

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चीन के सैनिकों ने 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में जो हिमाकत की, उसकी पूरे देश में चर्चा हो रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को अरुणाचल की घटना की पूरी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि चीन ने यथास्थिति बदलने की कोशिश की थी, जिसका भारतीय जवानों ने डटकर जवाब दिया। आखिर में चीन के सैनिक लौटने के लिए मजबूर हो गए। सीमा पर इस तरह की हिमाकत चीन ने कोई पहली बार नहीं की है।

2017 में डोकलाम, 2020 में गलवान और अब तवांग, आखिर चीन चाहता क्या है? यह सवाल हर भारतीय के दिमाग में जरूर होगा क्योंकि ऐसी झड़पें 1967, 75, 87 में भी हुई थीं। 9 दिसंबर की घटना से एक हफ्ते पहले ही चीन ने भारत से 1993-1996 के द्विपक्षीय सीमा समझौतों का पालन करने की दुहाई दी थी। तब वह औली में भारत और अमेरिका के सैन्य अभ्यास से भड़का हुआ था। लेकिन अब उसने बॉर्डर पर तवांग सेक्टर में खुलेआम दुस्साहस किया है। क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी अड़चनों के बावजूद भारतीय सेना ने फौरन जवाबी कार्रवाई की। हाथापाई में दोनों तरफ के सैनिकों को चोट आई है। ऐसा लगता है कि चीनी नेतृत्व शी जिनपिंग को सब कुछ 1962 जैसा ही लग रहा है। चीन शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लालकिले के प्राचीर से स्वाधीनता दिवस पर दिए गए उस बयान को भूल गया है कि भारत भी अब एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है और उसने भी इन्हें दिवाली के पटाखे छुड़ाने के लिए नहीं रखा है। चीन अब भी भारत को पुराने नजरिये से ही देख रहा है।

भारत की तरफ से कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि ये आज का भारत है और हर तरह से सक्षम है। दरअसल चीन न तो द्विपक्षीय समझौतों का सम्मान करता है और न ही अंतरराष्ट्रीय नियमों का। सच तो यह है कि चीन द्विपक्षीय समझौतों को दूसरे देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करता है और ख़ुद पर कभी लागू नहीं करता है। तवांग जैसे अप्रत्याशित घटनाक्रम से द्विपक्षीय संबंध बुरी तरह से प्रभावित होंगे, चीन की आक्रामकता से सभी द्विपक्षीय संबंध टूट जाने का खतरा भी बढ़ेगा। विशेषज्ञों की मानें तो भारत को सख्ती के साथ डटे रहना होगा और इस समस्या का हमेशा के लिए समाधान निकालना होगा। चीन ने जो कुछ भी किया उससे कोई अचरज नहीं होना चाहिए। एक बात तो साफ है भारत को जो भी करना है, अपने बूते और अकेले ही करना है। असल बात तो ये है कि भारत के सामने चौतरफा कई चुनौतियां हैं- एक तरफ तो अभी वह कोरोना वायरस से बाहर निकला है तो तीन तरफ चीन, पाकिस्तान और नेपाल हैं। एक सच ये भी है कि ये मोदी सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है और पूरे कार्यकाल में अब तक आयी सबसे बड़ी चुनौती भी जिससे सामरिक और कूटनीतिक, हर स्तर पर सरकार को निपटना होगा।

अत: अब भारत-चीन संबंधों को लेकर बीती बातों पर विचार का वक्त गुजर चुका है। अब वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं है। फिर भी हड़बड़ी में फैसला नहीं होना चाहिए। अब तो जरूरी सा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के खिलाफ भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के बारे में जल्द से जल्द फैसला लें, भले ही वो कूटनीतिक प्रकृति वाली ही क्यों न हो। प्रधानमंत्री मोदी को आज सभी का समर्थन प्राप्त है और उनके शांतिप्रिय किंतु दृढ़ विकास वाले विचारों की हर तरफ सराहना होती है। इसलिए उन्हें कूटनीति का बाण चला कर इस विस्तारवादी ड्रैगन के मुंह को हमेशा के लिए बंद करने की मुहिम अवश्य छेड़नी चाहिए ताकि चीन या तो सकारात्मक मार्ग पर चले अथवा दुनिया में अलग-थलग पड़ जाए।

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