प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार इस बात के लिए चेताया है कि असामाजिक तत्व और देश के दुश्मन भारत की एकता और अखंडता को तोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा है कि इस तरह के प्रयासों के खिलाफ हिन्दुस्तान को दृढ़ता से खड़ा होना है। भारत के लिए एकता कभी भी एक आवश्यकता नहीं रही है बल्कि यह इसकी विशिष्टता रही है। आज से नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों पूर्व से गुलामी के लंबे कालखंड में भी हमारी एकता देश के दुश्मनों को चुभती रही। पीएम मोदी ने याद दिलाया कि जितने भी विदेशी आक्रांता आए, सभी ने भारत में विभेद पैदा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। भारत को बांटने के लिए, भारत को तोड़ने के लिए सब कुछ किया। हम फिर भी उसका मुकाबला सिर्फ इसीलिए कर सके, क्योंकि एकता का अमृत हमारे भीतर जीवंत था। इसलिए हमें आज बहुत सावधान भी रहना है।
समय बहुत ज्यादा नहीं बदला है और अतीत की तरह ही भारत के उत्कर्ष और उत्थान से जलने व परेशान होने वाली ताकतें आज भी विद्यमान हैं। वे आज भी हमें जातियों के नाम पर तोड़ने और अलग करने तथा बांटने की हर संभव कोशिश करती हैं। कभी प्रांतों और भाषा के नाम पर हमें लड़ाने की कोशिश होती है तो कभी एक भारतीय भाषा को दूसरी भारतीय भाषा का दुश्मन बताने के लिए अभियान चला कर ऐसे प्रयास समय- समय पर किए जाते रहते हैं। इतिहास गवाह है कि इतिहास को भी इस तरह पेश किया जाता है ताकि देश के लोग जुड़ें नहीं, बल्कि एक दूसरे से दूर हों।
इसके लिए असामाजिक तत्वों के द्वारा तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। लोगों को सोशल मीडिया एवं संचार के अन्य तमाम माध्यमों के जरिए भरमाया जाता है और उनके मन में देश के खिलाफ जहर भरने की साजिशें रची जाती हैं। उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रलोभन भी दिए जाते हैं। यह जरूरी नहीं है कि देश को कमजोर करने वाली ताकतें हमेशा खुले दुश्मन के रूप में ही देश की एकता व अखंडता पर हमला करें। कई बार ये ताकतें गुलामी की मानसिकता के रूप में लोगों के भीतर घर कर जाती हैं तो कई बार व्यक्तिगत स्वार्थों के जरिए सेंधमारी करती हैं। अनेक बार ये तुष्टीकरण के रूप में, कभी परिवारवाद के रूप में, कभी लालच और भ्रष्टाचार के रूप में दरवाजे तक दस्तक दे देती हैं और देश को बांटती तथा कमजोर करती हैं।
हाल ही में नई दिल्ली में हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी देश व दुनिया के लिए खतरों का जिक्र करते हुए कहा कि हाल के वर्षों में खासतौर से खुले और उदार समाज में आतंकवादी समूहों, उनके वैचारिक अनुयायियों और अकेले हमला करने वाले लोगों ने नई तकनीकों तक पहुंच हासिल करके अपनी क्षमताएं कई गुना बढ़ा ली हैं। वे आजादी, सहिष्णुता और प्रगति पर हमला करने के लिए तकनीक, पैसा और सबसे जरूरी खुले समाज के लोकाचार का इस्तेमाल करते हैं।
आतंकवादी समूहों और संगठित आपराधिक नेटवर्कों की ओर से ड्रोन आधारित हवाई प्रणालियों के इस्तेमाल ने भी दुनियाभर में सरकारों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। इंटरनेट और सोशल मीडिया आतंकियों की टूलकिट का अहम इंस्ट्रूमेंट बन चुके हैं। इसके जरिए वे फेक न्यूज का बाजार गर्म करने में एक पल भी नहीं चूकते। इसकी वजह से सामाजिक सद्भाव का माहौल भी खतरे में पड़ गया है। यद्यपि इन सब पर लगाम लगाने के प्रयास भी निरंतर हो रहे हैं। सरकार आतंकवाद, भ्रष्टाचार, सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त रुख भी अपना रही है पर हमें यह ध्यान रखना होगा कि इसमें जरा भी ढिलाई नहीं आनी चाहिए।
हालांकि भारत ने समस्त देशों से असामाजिक तत्वों की ओर से ‘कूट संदेश’ और ‘क्रिप्टो करंसी’ जैसी नई प्रौद्योगिकियों के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए भी समन्वित वैश्विक प्रयास करने का आह्वान किया है पर अनेक देश ऐसे भी हैं जो ऐसे तत्वों को तन, मन, और धन से बढ़ावा दे रहे हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान के संदर्भ में स्पष्ट रूप से यह भी कहा कि कुछ देशों ने आतंकवाद को ‘राज्य द्वारा वित्त पोषित उद्यम’ बना लिया है। जयशंकर ने तो चीन को भी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के प्रस्तावों में अड़ंगा डालने को लेकर आड़े लिया और उसकी आलोचना की। वैसे उन्होंने इस बात पर संतोष भी जताया कि संयुक्त राष्ट्र की आतंकरोधी प्रतिबंध व्यवस्था ऐसे खुराफाती देशों को आगाह करने के लिए प्रभावी है पर इसके बावजूद आतंकवाद का खतरा बढ़ रहा है, खासतौर से एशिया और अफ्रीका में, जैसा कि 1267 प्रतिबंध समिति निगरानी रिपोर्टों में बार-बार उल्लेख किया गया है। अत: इस व्यवस्था में भी बदलाव की और संभावनाएं हैं ताकि चीन जैसे देश अपने गलत मंसूबों में कामयाब न होने पाएं।
एकतरफ जहां संयुक्त राष्ट्र की आतंकरोधी प्रतिबंध व्यवस्था के आशावादी बीज हैं वहीं इनमें लग रही सेंध ने इनका चिंताजनक पहलू भी उजागर कर दिया है। इनका दुरुपयोग करके नापाक मंसूबे अंजाम दे सकने वाले तत्वों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी हो गया है कि वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयास हों। इसके लिए जरूरी है कि दुनिया के तमाम देशों की सरकारें मुस्तैद रहें। नियामक एजेंसियों की सतर्कता से ही दुष्प्रचार‚ कट्टरता फैलाने और साजिशों को अंजाम देने में प्रयुक्त होने वाले मंचों का इस्तेमाल रोका जा सकेगा।
वैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा भारत में एक विशेष बैठक का आयोजन करना भी यह दर्शाता है कि शीर्ष वैश्विक निकाय में नई दिल्ली के मौजूदा कार्यकाल के दौरान आतंकवाद से मुकाबला शीर्ष प्राथमिकताओं में शुमार है।
इसके अलावा साइबर क्राइम भी एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। व्यक्ति और उसकी निजी जानकारियां और सार्वजनिक गतिविधियां साइबर तंत्र के तहत ब्योरों और आंकड़ों में दर्ज होने लगी हैं जो कुछ अवांछित समूहों या लोगों तक पहुंच रही हैं। वे उसका इस्तेमाल आपराधिक तौर पर भी करने लगे हैं। भारत में अभी आंकड़ों की सुरक्षा की दीवार बहुत मजबूत नहीं है इसलिए यहां साइबर खतरे का दायरा बड़ा होता जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरे विकसित देश ऐसे जोखिम से पूरी तरह सुरक्षित हैं। हाल ही में इनर्जी आस्ट्रेलिया में हुई आंकड़ों की चोरी उन घटनाओं की महज एक कड़ी है जिनमें सिर्फ बीते एक महीने के दौरान आस्ट्रेलिया के सात प्रमुख व्यवसाय आंकड़ों की सेंधमारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या ने दुनिया भर में चिंता पैदा कर दी है। अराजक तत्व एवं आतंकी धन उगाही के लिए इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर दुनिया भर में इस अपराध से निपटने के लिए कोई ज्यादा सक्षम और उपयोगी तरीका और तंत्र विकसित नहीं किया गया तो यह सभी के लिए बड़ा खतरा बन जाएगा। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी प्रकार के खतरों से निपटने के लिए सामूहिक वैश्विक प्रयास किए जाएं।