एड्स से निपटने में सर्वाधिक जरूरी है जागरुकता लेिकन सरकार व स्वास्थ्य संगठनों की लाख कोशिशों के बावजूद ऐसा नहीं हो पा रहा। अधिकतर लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से एचआइवी परीक्षण कराने से कतराते हैं। एचआइवी संक्रमित व्यक्ति की पहचान होने पर उसके साथ किया जाने वाला व्यवहार भी चिंतनीय और निंदनीय है। अस्सी के दशक में दुनिया ने पहली बार एड्स नामक बीमारी का सामना किया था। कुछ वर्षों तक इसे समलैंगिकों की बीमारी माना जाता रहा और फिर इसे असुरक्षित यौन संबंधों से पैदा होने वाला रोग माना गया। मगर बाद के वर्षों में वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि यह जानलेवा बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा एचआइवी (ह्यूमन इम्युनो डेफिशिएंसी वायरस) संक्रमित रक्त , संक्रमित सुई, संक्रमित मां से बच्चे में तथा कुछ अन्य कारणों से भी फैलती है।
मरीजों की संख्या घटी लेकिन खतरा वही
हालांकि अब सरकारों और सामाजिक संस्थाओं द्वारा चलाए गए अभियान के चलते धीरे-धीरे इसके मरीजों की संख्या में गिरावट दर्ज की जाने लगी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2010 से अब तक एचआइवी संक्रमण की दर में छियालीस फीसद से ज्यादा की कमी आई है, जबकि इस संक्रमण की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी पच्चीस फीसद से ज्यादा कम हुआ है।राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के आंकड़ों के अनुसार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एचआइवी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या पिछले दस वर्षों में काफी कम हुई है। नाको के मुताबिक 2011-12 में असुरक्षित यौन संबंधों के कारण एचआइवी संक्रमित लोगों की संख्या 2.4 लाख थी, जबकि 2020-21 में यह घट कर 85268 रह गई।
देश को पूर्ण एड्स मुक्त बनाना अभी दूर की कौड़ी
नाको के ही आंकड़ों में बताया गया है कि 2011-2021 के बीच भारत में असुरक्षित यौन संबंधों के कारण 17 लाख, 8 हजार, 777 लोग एचआइवी से संक्रमित हुए। 2020 तक देश में 81,430 बच्चों सहित एचआइवी पीड़ित लोगों की कुल संख्या 23,18,737 थी। जांच संबंधी आंकड़ों के मुताबिक 2011-12 से 2020-21 के बीच रक्त और रक्त उत्पाद के जरिए 15,782 लोग एचआइवी से पीड़ित हुए, जबकि मांओं के जरिए 4,423 बच्चों में यह बीमारी फैली। भले ही एचआइवी संक्रमितों की संख्या में लगातार कमी आ रही है, लेकिन भारत को ‘पूर्णत: एड्स मुक्त’ होने में अभी काफी समय लगेगा, क्योंकि अब भी देश में करीब पच्चीस लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं और यह आंकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर है।
दुनिया भर में पौने चार करोड़ मरीज
यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 3.7 करोड़ से ज्यादा लोग एचआइवी संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या किशोरों की है और इनमें से सबसे ज्यादा किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं।
कारगर हो रही एआरटी
हालांकि एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) के प्रयोग में आने के बाद एड्स से मरने वालों की संख्या में कमी आई है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब अस्सी फीसद मरीजों को ही अपने एचआइवी पाजिटिव होने की जानकारी है और उनमें से करीब साठ फीसद का इलाज ही एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी से हो रहा है। ऐसे में इस खतरनाक बीमारी के प्रसार का खतरा बरकरार है।भारत में एड्स के प्रसार में आज भी स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता और जिम्मेदारी का अभाव, अशिक्षा, निर्धनता, अज्ञानता और बेरोजगारी प्रमुख कारण हैं।
उत्तर प्रदेश के मामले
हाल ही में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में ऐसा ही झकझोर देने वाला मामला सामने आया, जिसमें एचआइवी संक्रमित एक बीस वर्षीया महिला का फिरोजाबाद मेडिकल कालेज में डाक्टर ने प्रसव कराने से इनकार कर दिया, जिससे नवजात की जान चली गई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एड्स मरीज की पहचान छिपाने के आदेश हैं, लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा एक एड्स पीड़ित मरीज की पहचान को उजागार करने का मामला भी सामने आया। मरीज के बिस्तर पर एचआईवी पीड़ित की पर्ची लगा कर उसकी पहचान उजागर कर दी। इस वर्ष यूएन एड्स द्वारा विश्व एड्स दिवस की विषय-वस्तु ‘इक्यूलाइज’ रखी गई है, जिसके माध्यम से उन अनुचित परिस्थितियों और असमानताओं को दूर करने का आग्रह किया जा रहा है, जो एड्स को समाप्त करने में प्रगति को रोक रही हैं।
ऐसा है एचआइवी विषाणु
एचआइवी एक ऐसा विषाणु है, जो शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करते हुए शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को कम या नष्ट कर देता है। यही एड्स का कारण बनता है और रोगी मौत की ओर खिंचा चला जाता है। यह वायरस शरीर की श्वेत कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिनमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण है।
एचआइवी से संक्रमित होने के चंद सप्ताह के अंदर ही प्रभावित व्यक्ति को बुखार, गला खराब होना, कमजोरी होना आदि लक्षण हो सकते हैं। इसके बाद बीमारी के तब तक कोई लक्षण नहीं उभरते, जब तक कि यह एड्स न बन जाए।
नई दिल्ली। रिसर्चर्स ने ऐसी दवा खोज निकाली है, जो दिखेगी नहीं लेकिन कैंसर रोकने में इस्तेमाल की जाएगी। यह दवा चींटी से 50 हजार गुना छोटी नैनो ड्रग है। अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इस इम्यूनोथेरेपी की खोज की है, जो ट्यूमर को कम करने में मदद करती है। इसका चूहों पर टेस्ट किया गया। जिसका रिजल्ट पॉजिटिव मिला। अब इसे इंसानों पर टेस्ट किए जाने की योजना बनाई जा रही है। चूहों की बड़ी आंत के कैंसर और पैंक्रियाज के कैंसर को रोकने में यह दवा कारगर पाई गई। ये दवा इम्यून प्रोटीन को रोकने काम करेगी जो कैंसर रोगियों के शरीर में ट्यूमर बढ़ाने और फैलाने की बड़ी वजह बनते हैं। शोध को नेचर नैनो टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है।