डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। एंटीबायोटिक दवाइयों का असर लगातार कम होता जा रहा है। बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन में ये दवाइयां बेअसर साबित हो रही हैं। मेडिसिन की भाषा में इसे कहते हैं- एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर)। इसमें सबसे ज्यादा कॉमन कंडीशन है एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस।
इस मेडिकल कंडीशन का कारण है एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल, जिसमें सभी प्रकार की एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल्स, एंटीफंगल्स दवाएं शामिल हैं।
क्या है एंटीमाइक्रोबियल व एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस
डब्ल्यूएचओ के हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को इतनी ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई गईं कि उससे एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस और ज्यादा बढ़ गया है।
कोरोना के भय से ले ली दवा
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक महामारी के दौरान जितने लोगों को कोविड हुआ, उनमें से महज 8 प्रतिशत लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत थी, लेकिन डर का माहौल इतना था कि सारे लोगों को बहुत ज्यादा मात्रा में ये दवाएं दी गईं ं। तकरीबन 75 प्रतिशत लोगों ने पैंडेमिक के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया। भारत में कोविड के दौरान लोग सिर्फ डॉक्टरी सलाह पर ही नहीं, बल्कि थोड़ी भी सर्दी-खांसी होने पर खुद ही मेडिकल स्टोर से खरीदकर एंटीबायोटिक दवाइयां खा रहे थे।
इन सबका नतीजा ये हुआ कि सुपरबग में दवाइयों के प्रति एक रेजिस्टेंस डेवलप हो गया है। यह समस्या कोविड के पहले भी गंभीर थी, लेकिन अब और ज्यादा हो गई है।
डब्ल्यूएचओ का अनुमान
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक एएमआर मानव स्वास्थ्य पर मंडरा रहा सबसे बड़ा ग्लोबल खतरा है और 30 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी जद में हैं। डब्ल्यूएचओ के ही मुताबिक वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण 12 लाख लोगों की मौत हुई और तकरीबन 49 लाख लोगों की मौत में कहीं-न-कहीं एएमआर की बड़ी भूमिका थी।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्या होता है
आसान भाषा में इसे ऐसे समझिए। शरीर में जब किसी वायरस या बैक्टीरिया का हमला होता है तो शरीर बीमार पड़ जाता है। अगर वह वायरस इतना शक्तिशाली है कि शरीर खुद उसका मुकाबला करने में सक्षम नहीं है तो डॉक्टर उससे लड़ने के लिए हमें दवाएं देते हैं, जिसे हम एंटीबायोटिक दवाएं कहते हैं। एंटीबायोटिक ड्रग्स वायरस को मारकर शरीर को प्रोटेक्ट करते हैं लेकिन अगर हम जानकारी के अभाव में बार-बार एंटीबायोटिक ड्रग्स लेते रहें, तब भी, जब हमारे शरीर को उसकी जरूरत नहीं है तो शरीर में मौजूद वायरस उस ड्रग से इम्यून हो जाता है। फिर उस पर एंटीबायोटिक्स का कोई असर नहीं पड़ता। इसी स्थिति को एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस कहते हैं। दवाइयों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के कारण ये रेजिस्टेंस- एंटीबैक्टीरियल, एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल्स, एंटीफंगल्स सभी प्रकार की दवाइयों के लिए डेवलप हो जाता है तो उसे एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्यों होता है
आपने वो ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ वाली कहानी तो सुनी होगी। लड़का रोज बिना बात के चिल्लाकर लोगों को बुलाता रहा और जब एक दिन सचमुच भेड़िया आया तो उसे बचाने कोई नहीं आया।
कुछ ऐसी ही कहानी एंटीबायोटिक ड्रग्स की भी है। हम हर मामूली सी बात पर दवा खा रहे हैं। थोड़ा सा सिरदर्द हुआ, थोड़ा सा बुखार हुआ, थोड़ा सा जुखाम हुआ, छींक आई, खांसी आई, तुरंत एजिथ्रोमाइसिन, क्रोसिन, पैरासिटामॉल गटक ली।
डॉक्टर के पास जाने की भी जरूरत नहीं समझते। सीधे मेडिकल स्टोर पहुंचे, उसे समस्या बताई और मेडिकल स्टोर वाले ने हैवी एंटीबायोटिक दवाएं थमा दीं और हमने भी बिना सोचे-समझे बस खा ली।
जो सर्दी-जुखाम, बुखार दो दिन में वैसे भी अपने आप ठीक हो जाना था, उसे दवाइयां खाकर भी दो दिन में ठीक कर लिया और ये सोचकर खुश हो गए कि ये दवा का असर है।
शरीर को इतनी दवाएं खिलाई हैं कि अब बैक्टीरिया और वायरस पर दवाओं का कोई असर ही नहीं हो रहा।
कई और कारण भी हैं
इसके अलावा भी कई कारण हैं, जो एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट सुपरबग के पैदा होने के लिए जिम्मेदार हैं।
एंटी बैक्टीरियल ड्रग्स सिर्फ दवाओं के जरिए ही नहीं, खाने-पीने की हर चीज के जरिए पेट में जा रहे हैं। हर फल-सब्जी, पेड़, हवा, पानी, मिट्टी सब जगह केमिकल मौजूद है, जो बग्स को इन सबके प्रति इम्यून बना रहा है।
सुपरबग्स शातिर अपराधी जैसे
सुपरबग्स ऐसे शातिर अपराधी हैं, जो किसी बंदूक की गोली से नहीं मर रहे। उन पर किसी बम, गोले का कोई असर नहीं हो रहा। ऐसे सुपरबग्स पैदा हो गए हैं जो खुद भी संक्रमण के जरिए एक शरीर से दूसरे शरीर में पहुंच सकते हैं।
हमारा रवैया भी बहुत लापरवाही भरा
इसके अलावा दवाओं को लेकर हमारा रवैया भी बहुत लापरवाही भरा रहता है। अगर डॉक्टर ने पांच दिन की डोज दी है तो दो दिन के बाद ही हमें लगता है कि हम ठीक हो गए और दवाई खाना बंद कर देते हैं। ऐसे में संबंधित वायरस या बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म नहीं होता और दोबारा उभर आता है।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का पता कैसे चलता है
इसे पता लगाने का सिर्फ एक ही तरीका है। आपको कोई इंफेक्शन या बीमारी हुई, डॉक्टर ने आपको एंटीबायोटिक ड्रग्स दिए, लेकिन वो दवाएं आपके शरीर पर असर नहीं कर रही हैं। आपकी बीमारी बढ़ती जा रही है।
डॉक्टर अब और ज्यादा पावरफुल एंटीबायोटिक्स देकर संक्रमण को दूर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई दवा कारगर नहीं होती। इससे पता चलता है कि आपके शरीर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पैदा हो गया है।
परीक्षा से ही पता चलता है
एक स्वस्थ व्यक्ति को देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि उसके साथ यह हेल्थ कंडीशन है या नहीं। इसका पता परीक्षा की घड़ी आने पर ही चलता है।
किन को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का रिस्क ज्यादा
हर वह व्यक्ति जिसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और जिसका केमिकल्स, ड्रग्स आदि का एक्सपोजर ज्यादा है, वह खतरे की जद में है।
बचाव के लिए इन बातों पर करें गौर
– सर्दी-जुखाम होने पर तुरंत एलोपैथिक दवाएं न खाएं।
– मामूली तबीयत खराब होने पर परहेज और घरेलू उपचार को ही प्राथमिकता दें।
– सीजनल वायरल इंफेक्शन तीन से चार दिन में अपने आप ठीक हो जाता है। वो दवा खाने पर भी ठीक हो जाएगा और दवा न खाने पर भी। इसलिए इंतजार करें।
– कभी भी बिना डॉक्टर के प्रिस्िक्रप्शन के खुद से दवाएं न खाएं। • हालांकि आजकल डॉक्टर्स भी एंटीबायोटिक ड्रग्स के प्रिस्िक्रप्शन को लेकर जिम्मेदार नहीं हैं। यह कहना है विश्व स्वास्थ्य संगठन का, जिसने तीन साल पहले पूरी दुनिया में डॉक्टरों के लिए मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं प्रिस्क्राइब करने के संबंध में एक एडवाइजरी जारी की थी। इसलिए कोशिश करें कि किसी अच्छे भरोसेमंद डॉक्टर की सलाह लें। एक जिम्मेदार डॉक्टर आपको तब तक एंटीबायोटिक दवाएं नहीं देगा, जब तक सचमुच उसकी जरूरत न हो।
•- मेडिकल स्टोर से अपने आप खरीदकर कोई दवा न खाएं।
– स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं, फल-सब्जियां खाएं।