ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में भ्रामक विज्ञापन मामले की सुनवाई चल रही है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ कर रही है। मामले की पिछली सुनवाई में योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण द्वारा बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर किए गए हलफनामों को कोर्ट ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने बेहद कड़ी टिप्पणी की थी और मामले में निष्कि्रयता बरतने के लिए उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के प्रति भी कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे। अब इस कड़ी टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई, जजों ने नाराजगी जताई है।
क्या कह रहे पूर्व जज
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों का कहना है कि अदालत की कार्यवाही संयम और संयम के मानक स्थापित करती है। शीर्ष अदालत वैधता, संवैधानिकता और कानून के शासन के इर्द-गिर्द घूमते हुए निष्पक्ष बहस के लिए एक मंच के रूप में कार्य करती है। अदालत की अवमानना के डर का मतलब कानून का शासन, अदालतों की गरिमा और उनके आदेशों की पवित्रता को बनाए रखना है। पूर्व जजों का कहना है कि ‘बखिया उधेड़ देंगे’ धमकी जैसी है। यह कभी भी संवैधानिक न्यायालय के जज के उस बयान का हिस्सा नहीं हो सकता है, जिसे आगे चल कर मानक माना जाए या उसकी नजीर दी जाए।
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बूटा सिंह मामले की दिलाई याद
जस्टिस अमानुल्लाह की डांट ने 24 अक्टूबर, 2005 को जस्टिस बी एन अग्रवाल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष कार्यवाही की यादें ताजा कर दीं। उस समय बिहार के तत्कालीन राज्यपाल, वरिष्ठ राजनेता बूटा सिंह, बार-बार बेदखली के आदेशों की अनदेखी करते हुए, दिल्ली में एक सरकारी बंगले पर अनधिकृत रूप से कब्जा कर रहे थे। तब जज ने कहा था, ‘बिहार के राज्यपाल दिल्ली में बंगला लेकर क्या कर रहे हैं? उन्हें यहां बंगला आवंटित नहीं किया जा सकता। उन्हें बाहर फेंक दीजिए।’ पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने सुझाव दिया कि खुद को आवश्यक न्यायिक आचरण से परिचित कराने के लिए जस्टिस अमानुल्लाह को सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णयों को देखना अच्छा होगा। ये कृष्णा स्वामी बनाम भारत संघ (1992) और सी रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए एम भट्टाचार्जी (1995) ) केस हैं।