ब्लिट्ज ब्यूरो
लखनऊ। भाजपा ने राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा और निर्माण को जिस तरह से जनता के बीच उठाया, उसका फायदा उसे नहीं मिला। राममंदिर के इर्द-गिर्द की लोकसभा सीटें भी भाजपा हार गई। अयोध्या मंडल में उसका रिपोर्ट कार्ड जीरो रहा। इतना ही नहीं वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने मध्य यूपी की 24 में से 22 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसे इस क्षेत्र में 12 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं, कांग्रेस को 3 व सपा को 10 सीटों का फायदा हुआ।
अयोध्या मंडल की फैजाबाद सीट भी भाजपा नहीं बचा सकी। सपा ने अयोध्या में दलित प्रत्याशी व पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को उतारा, जिन्होंने भाजपा के लल्लू सिंह को 50 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। इस मंडल की सबसे चर्चित सीट अमेठी में भाजपा प्रत्याशी व कद्दावर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कांग्रेस के केएल शर्मा के सामने टिक नहीं सकीं।
बाराबंकी में कांग्रेस के तनुज पुनिया ने दो लाख से ज्यादा मतों से भाजपा प्रत्याशी राजरानी रावत को हराकर साबित कर दिया कि मंदिर से उपजी किसी तरह की लहर यहां तक नहीं पहुंच सकी। अयोध्या मंडल के अम्बेडकरनगर क्षेत्र में पिछली बार बसपा के टिकट पर सांसद चुने गए रितेश पांडे पर भाजपा ने इस बार दांव लगाया था। उसका यह दांव भी फ्लॉप साबित हुआ। सपा के लालजी वर्मा ने उन पर बढ़त ली। अयोध्या मंडल की ही सुल्तानपुर सीट आठ बार की सांसद मेनका गांधी नहीं जीत सकीं। रायबरेली में राहुल गांधी की प्रचंड जीत ने दिखा दिया कि सभी वर्गों का उन्हें भरपूर समर्थन मिला। खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ थार कांड के बाद उपजे गुस्से का भाजपा ठीक से आकलन नहीं कर पाई।नतीजतन, सपा के उत्कर्ष वर्मा ने उनसे यह सीट छीन ली।
धौरहरा में भाजपा की रेखा वर्मा भी थोड़े मार्जिन से सपा के आनंद भदौरिया से हार गई। सीतापुर में तो शुरुआत में खुद कांग्रेस को भी उम्मीद न थी कि उसका प्रत्याशी फाइट में आ जाएगा। राजेश वर्मा के पांच साल जनता से दूर रहने का खामियाजा भाजपा ने यह सीट गंवाकर उठाया। लखनऊ में भाजपा के राजनाथ सिंह 1 लाख 35 हजार मतों से जीते, पर पिछले चुनाव के मुकाबले यह अंतर उल्लेखनीय रूप से कम है। तब उनकी जीत का अंतर 3.47 लाख था। वहीं, मोहनलालगंज में भाजपा सांसद कौशल किशोर के खिलाफ गुस्से को भी पार्टी नहीं पकड़ पाई और सपा के आरके चौधरी ने उन्हें करीब 80 हजार मतों से पटखनी दी।