प्रदीप शर्मा
देश में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान अप्रैल 19 से शुरू होने वाले हैं। सबकी नजर इस बात पर टिकी हुई है, क्या मोदी की हैट्रिक लगेगी? तमाम सर्वे में यही बात आ रही है कि मोदी की सरकार फिर आने वाली है। सवाल है कि मोदी में ऐसा क्या है कि वो हैट्रिक लगाएंगे और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जीत की बराबरी कर लेंगे? लेकिन इसी से जुड़ा सवाल है कि देश में सत्ता विरोधी लहर क्यों नहीं है, जबकि विदेशों में सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही है।
एर्दोगन को जबर्दस्त झटका
तुर्किये में खुद को मुस्लिमों के खलीफा समझने वाले एर्दोगन को जबर्दस्त झटका लगा है। 2003 से तुर्किये में सरकार चलाने वाले राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन को सियासी तौर पर सबसे बड़ी हार मिली है। लोकल बॉडी चुनाव यानी स्थानीय निकाय चुनाव में उनकी पार्टी तमाम बड़े शहरों में हार गई है। इस्तांबुल और अंकारा में भी एर्दोगन की पार्टी हार गई।
बाइडेन की भी हालत ठीक नहीं
बात सिर्फ तुर्किये की ही नहीं है बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की भी हालत ठीक नहीं है। इसी साल नवंबर में होने वाले चुनाव में बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच फिर से टक्क र होने वाली है।
– मजबूत नेतृत्व, चमकती अर्थव्यवस्था व अनुशासित पार्टी के बूते ‘हैट्रिक’ की डगर आसान
ऋषि सुनक की स्थिति डांवाडोल
यही नहीं, ब्रिटेन में अगले साल जनवरी में प्रधानमंत्री का चुनाव होने वाला है, वहां भी ऋषि सुनक की स्थिति ठीक नहीं मानी जा रही।
घट रही ट्रूडो की लोकप्रियता
कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता घट रही है, वहीं पाकिस्तान में इमरान खान को जेल में भी डालकर सत्ताधारी पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाई।
कमजोर नेतृत्व नाम आर्थिक विकास
दरअसल चुनाव पर आर्थिक तंगी, राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर नेतृत्व का साया रहता है। अमेरिका में जीडीपी दर करीब 2 फीसदी, ब्रिटेन की जीडीपी दर करीब 4.3 फीसदी और तुर्किये की जीडीपी दर करीब 5.5 फीसदी है। एक तरह कमजोर नेतृत्व और दूसरी तरफ आर्थिक विकास मायने रखता है, लेकिन ऐसा हाल भारत का नहीं है। देश में जीडीपी दर 7.5 फीसदी रहने का अनुमान है।
भारत दुनिया में उभरती अर्थव्यवस्था है, राजनीतिक रूप से बीजेपी मजबूत पार्टी है और देश का नेतृत्व भी मजबूत माना जाता है। दरअसल देश में नेतृत्व आधारित पार्टी है, न कि पार्टी आधारित नेतृत्व । चाहे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हों या इंदिरा गांधी या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, जब नेतृत्व मजबूत होता है तो पार्टी भी मजबूत हो जाती है और जब नेतृत्व कमजोर होता है तो पार्टी भी कमजोर हो जाती है। यही वजह है कि नेतृत्व की वजह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार हैट्रिक लगाने का दावा कर रहे हैं।
चुनावी राजनीति में जो जीतता है, उसी का सिक्क ा चलता है। ऐसा नहीं कि नेतृत्व पर सवाल नहीं उठते हैं। जब बीजेपी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव हारी तो सवाल उठने लगे कि मोदी के जादू का अस्त होने वाला है, लेकिन अगले ही पल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जीत गई तो फिर डंके की चोट पर कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी का फिर उदय हो गया है। अब ये दावा किया जा रहा है कि मोदी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं है। दरअसल बीजेपी की राजनीति की रीढ़ हिंदुत्व है लेकिन सिर्फ हिंदुत्व की राजनीति से चुनाव नहीं जीता जा सकता है बल्कि बीजेपी विकास पर भी जोर दे रही है। यही नहीं, जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ हर वर्ग को मिल रहा है मसलन उज्जवला योजना, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान निधि सम्मान, जनधन, गरीबों के लिए 5 लाख का मुफ्त इलाज और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज के जरिए बीजेपी वोट बैंक बनाने में सफल हो रही है। वहीं देश को दुनिया में तीसरी इकोनॉमी और 2047 में विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प भी वोटरों पर प्रभाव डाल रहा है। यही नहीं, बीजेपी विपक्षी पार्टियों को भ्रष्ट साबित करने में लगी है और परिवारववादी पार्टी उनके निशाने पर है।
तीसरी बड़ी बात है कि बीजेपी दावा करती है कि उनके पास मजबूत नेतृत्व और ठोस इरादे वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, इसीलिए मोदी का चेहरा पार्टी से बड़ा कर दिया गया है। संदेश यही है कि मोदी मतलब बीजेपी, मोदी मतलब भारत। बीजेपी ने एक झटके में जीते हुए तीन राज्यों में मुख्यमंत्री का नया चेहरा चुना है, कहीं भी विरोध का एक शब्द भी नहीं निकला है, इतना ही नहीं हरियाणा में मुख्यमंत्री को बदल दिया गया। संदेश यही है कि सरकार हो या पार्टी, हर जगह एक ही चेहरा है वो है मोदी का चेहरा। ये भी एक वजह है कि विपक्षी पार्टियों में भगदड़ सी मच गई, इनके नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं और जो राहुल का गुणगान करते थे, वे अब मोदी का गुणगान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पार्टी लगातार बढ़ रही है। शायद यही वजह है कि विदेश की धरती पर सत्ता विरोधी लहर दिख रही है, लेकिन देश की जमीन पर सत्ता विरोधी लहर कहीं नहीं दिख रही है, हालांकि इसकी परीक्षा होनी बाकी है।