नई दिल्ली। देश में करीब 10 लाख लोगों को अपनी चपेट में लेने वाली दुर्लभ बीमारियों के इलाज की खोज के लिए 18 संस्थानों के शोधार्थी एक साथ आए हैं। इनका उद्देश्य तीन गंभीर दुर्लभ बीमारियों के लिए जीन या फिर एमआरएनए थेरेपी आधारित उपचार विकसित करना है।
इसके शुरुआती चरण में देश में पांच क्लीनिक सेंटर खोले गए हैं, जहां इनका डाटाबेस तैयार किया जाएगा। हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोक विश्वविद्यालय ने देश के 18 संस्थानों के कुल 38 शोधार्थियों के साथ मिलकर दुर्लभ बीमारियों पर अध्ययन शुरू किया है। इसमें ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, जीएनई मायोपैथी और लिंब-गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एलजीएमडी) नामक बीमारियां शामिल हैं।
सरकार से मांगी मदद : शोधकर्ताओं के अनुसार, अध्ययन के लिए सरकार से आर्थिक सहायता भी मांगी है।
बीमारियों का रोगी पर असर : ये बीमारियां मांसपेशियों को कमजोर कर देती हैं और रोगी के लिए स्थायी विकलांगता का कारण बन सकती हैं।
सेंटर खोले : अशोक विवि के प्रो. आलोक भट्टाचार्य ने बताया उनका लक्ष्य व्यापक डाटाबेस तैयार करना और रोग की प्रगति पर शोध करना है। पहले चरण में मुंबई, बंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली और आणंद में क्लीनिक सेंटर खोले जा रहे हैं, जहां इन रोगियों का उपचार होगा।
95 फीसदी का अभी नहीं इलाज : शोधकर्ताओं के अनुसार, लगभग 95 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियों का इलाज अभी संभव नहीं होता। ज्यादातर मामलों में रोगियों को विकलांगता के साथ रहना पड़ता है, जो मृत्यु का कारण भी बनती है। पांच प्रतिशत बीमारियों के इलाज पर करोड़ों रुपये खर्च आता है। अधिकांश दवाएं विदेशों में बनाई जाती हैं। इसलिए देश में इन रोगियों का एक बड़ा समूह इलाज से वंचित रहता है।