ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। इसरो का रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल स्पेसएक्स से बिल्कुल अलग है। मिशन के दौरान स्पेसएक्स रॉकेट के निचले हिस्से को बचाता है, जबकि इसरो रॉकेट के ऊपरी हिस्से को बचाएगा जो ज्यादा जटिल होता है। इसे रिकवर करने से ज्यादा पैसों की बचत होगी। ये सैटेलाइट को स्पेस में छोड़ने के बाद वापस लौट आएगा। इसरो का स्पेसक्रॉफ्ट ऑटोनॉमस लैंडिंग कर सकता है।
स्पेस एजेंसी का दावा
पिछले आरएलवी के सफल एक्सपेरिमेंट के वक्त स्पेस एजेंसी ने दावा किया था कि यह दुनिया में पहली बार, एक विंग वाली बॉडी को हेलिकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया था और रनवे पर ऑटोनॉमस लैंडिंग के लिए छोड़ा गया था। आरएलवी-टीडी में एक फ्यूजलेज स्ट्रेट बॉडी, एक नोज कैप, डबल डेल्टा विंग्स और ट्विन वर्टिकल टेल्स थीं। इसकी लंबाई 6.5 मीटर और चौड़ाई 3.6 मीटर थी।
विंग्ड स्पेस शटल पर क्यों काम कर रहा इसरो
1980 के दशक में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने दुनिया का पहला विंग्ड स्पेस शटल लॉन्च किया था। इसका नाम कोलंबिया था। नासा के पास ऐसे कुल 6 स्पेस शटल थे। हादसों के बाद 2011 में नासा ने इन शटल्स को रिटायर कर दिया। रूस ने भी बुरान नाम से अपनी रीयूजेबल स्पेस शटल टेक्नोलॉजी डेवलप की थी, लेकिन कुछ ही मिशन के बाद इसे बंद कर दिया गया।
इसरो का शटल अमेरिका-रूस से एडवांस
सवाल उठता है कि जब अमेरिका और रूस विंग्ड स्पेस शटल पर काम बंद कर चुके हैं तो इसरो इस पर काम क्यों कर रहा है? स्पेस टेक्नोलॉजी के कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि अमेरिका और रूस की जो टेक्नोलॉजी थी वो 20वीं सदी की थी, यानी पुरानी टेक्नोलॉजी। इसरो जिस टेक्नोलॉजी से विंग्ड स्पेस शटल बना रहा है वो 21वीं सदी की है। ऐसे में इसरो का शटल अमेरिका-रूस के शटल की तुलना में एडवांस होगा।
ऑर्बिट में सैटेलाइट को रिपेयर किया जा सकेगा
इससे स्पेस में लो-कॉस्ट एक्सेस मिलेगा। यानी स्पेस में ट्रैवल करना सस्ता हो जाएगा। ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस व्हीकल की मदद से ऑर्बिट में खराब हुए सैटेलाइट को डेस्ट्रॉय करने के बजाय रिपेयर किया जा सकेगा। इसके अलावा जीरो ग्रैविटी में बायोलॉजी और फार्मा से जुड़े रिसर्च करना आसान हो जाएगा।
अब लैंडिंग एक्सपेरिमेंट
इसरो ने सबसे पहले जब मई 2016 में इसकी टेस्टिंग की थी तब इसका नाम हाइपरसोनिक फ्लाइट एक्सपेरिमेंट (एचईएक्स) था। एचईएक्स मिशन में इसरो ने अपने विंग वाले व्हीकल आर एलवी-टीडी की रि-एंट्री को डेमॉन्सट्रेट किया था। अब लैंडिंग एक्सपेरिमेंट यानी एलईएक्स को भी पूरा कर लिया गया है। आने वाले दिनों में रिटर्न टु फ्लाइट एक्सपेरिमेंट (आरईएक्स) और स्क्रैमजेट प्रपल्शन एक्सपेरिमेंट (एसपीईएक्स) को अंजाम दिया जाएगा।
पहले स्टेज का स्केल
भविष्य में इस व्हीकल को भारत के रियूजेबल टू-स्टेज ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल का पहला स्टेज बनने के लिए स्केल किया जाएगा। इसरो के अनुसार आर एलवी-टीडी का कॉन्फिगरेशन एक एयरक्राफ्ट के समान है और लॉन्च व्हीकल और एयरक्राफ्ट दोनों की कॉम्प्लेक्सिटी को कंबाइन करता है।
एलन मस्क की कंपनी ने सबसे पहले बनाया रीयूजेबल रॉकेट
री यूजेबल रॉकेट का आइडिया स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अल्ट्रा-एक्सपेंसिव रॉकेट बूस्टर को रिकवर करना है ताकि फ्यूल भरने के बाद इनका फिर से इस्तेमाल किया जा सके। दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों में शामिल एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने सबसे पहले 2011 में इस पर काम करना शुरू किया था। 2015 में मस्क ने फॉल्कन 9 रॉकेट तैयार कर लिया जो रियूजेबल था।
फॉल्कन 9 रॉकेट की लैंडिंग
एलन मस्क ने 2015 में अपने फॉल्कन 9 रॉकेट को लैंड कराने में सफलता हासिल की थी इससे मिशन की कॉस्ट काफी कम हो गई।