ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड सरकार के राज्य से बाहर स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज में नौकरी के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) न जारी करने के आदेश पर विचार करेगा। कोर्ट ने मामले पर विचार का मन बनाते हुए उत्तराखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर (कम्युनिटी मेडिसिन) की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के हक में किसी तरह का अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता सहायक प्रोफेसर रुद्रेश नेगी ने उत्तराखंड सरकार के एनओसी से इनकार करने के 27 अगस्त 2020 के आदेश को चुनौती दी है। याचिका में उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने राज्य के बाहर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में नौकरी के लिए एनओसी जारी न करने के आदेश को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी।
आदेश की वैधानिकता पर होगा विचार
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और प्रसन्ना बी. वराले की अवकाशकालीन पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि यह अदालत सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी मेम्बर को दूसरी जगह नौकरी के लिए एनओसी जारी न करने के 27 अगस्त 2020 के आदेश की वैधानिकता पर विचार करेगा। यानी सुप्रीम कोर्ट देखेगा कि राज्य सरकार का एनओसी देने से इनकार करने का आदेश कानून की निगाह में वैध है कि नहीं। मामले में सात अगस्त को फिर सुनवाई होगी।
सहायक प्रोफेसर को नहीं दी एनओसी
इस मामले में हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर (कम्युनिटी मेडिसिन) रुद्रेश नेगी ने वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मेडिकल साइंस इंस्टीट्यूट में फैकल्टी पोस्ट के लिए निकले विज्ञापन में आवेदन करने के लिए एनओसी मांगी थी, लेकिन उसे एनओसी देने से इनकार कर दिया गया। उत्तराखंड सरकार के एनओसी से मना करने के जिस 27 अगस्त 2020 के आदेश को चुनौती दी गई है, वह आदेश कहता है कि सरकारी मेडिकल कॉलेज के टीचर को एनओसी तभी जारी की जाएगी, जबकि उसने राज्य के भीतर ही किसी अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेज में आवेदन किया हो।
योग्य लोगों की कमी को देखते हुए नहीं दी एनओसी
उसमें यह भी कहा गया था कि मौजूदा सरकारी मेडिकल कॉलेज टीचरों की कमी का सामना कर रहे हैं और सरकार भविष्य में कई और मेडिकल कॉलेज खोलने वाली है। इसलिए फैकल्टी में नियुक्ति के लिए योग्य लोगों की कमी को देखते हुए मौजूदा फैकल्टी सदस्य के राज्य के बाहर नौकरी के लिए एनओसी जारी करने का अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता।
एनओसी देना राज्य सरकार का विशेषाधिकार
याचिकाकर्ता की ओर से हाई कोर्ट में दलील दी गई थी कि सिर्फ राज्य के भीतर सरकारी मेडिकल कॉलेज में नौकरी के आवेदन पर ही एनओसी जारी करने की शर्त मनमानी और अवैध है।
उनका कहना था कि सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज समान समूह माने जाएंगे, इसलिए उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज और बाहर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में किया गया वर्गीकरण गलत है। दूसरी तरफ राज्य सरकार का कहना था कि एनओसी देना राज्य सरकार का विशेषाधिकार है। अगर वह किसी व्यक्ति को संस्थान के लिए जरूरी पाती है तो एनओसी देने से मना कर सकती है। नियोक्ता को एनओसी जारी करने को बाध्य नहीं किया जा सकता।
जा सकती है मेडिकल कॉलेज की मान्यता
हाई कोर्ट ने एनओसी न देने के आदेश को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील की दलीलें स्वीकार कीं कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है और राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी सदस्यों की कमी है और अगर फैकल्टी सदस्यों की संख्या तय मानक से कम हो जाती है तो मेडिकल कॉलेज की मान्यता जा सकती है। इसका न सिर्फ मेडिकल छात्रों बल्कि गुणवत्ता पूर्ण मेडिकल सेवाओं के लिए इन सरकारी मेडिकल कॉलेजों पर निर्भर आम जनता पर भी खराब प्रभाव पड़ेगा।