ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि न्याय की भारतीय अवधारणा पाश्चात्य दृष्टिकोण से पूरी तरह अलग है। भारतीय न्याय व्यवस्था में केंद्र बिंदु पीड़ित को न्याय दिलाना है। नए प्रस्तावित कानून के तहत कई धाराओं में बदलाव करके यह प्रावधान किया गया है, जिससे अपराधी की जब्त संपत्ति से पीड़ित को न्याय के रूप में मुआवजा मिल सके।
एक अधिकारी ने कहा कि प्रस्तावित बदलावों में करीब 200 धाराओं में अलग-अलग तरीके से न्याय के बुनियादी सिद्धांत का ख्याल रखा गया कि दंड के बजाय न्याय पर फोकस हो। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, दंड की व्यवस्था इसलिए है, जिससे इसे देखकर दूसरा कोई अपराध करने का दुस्साहस न करे।
कुर्की जब्ती के संबंध में नई धारा
अधिकारी ने बताया कि अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति की कुर्की जब्ती के संबंध में एक नई धारा जोड़ी गई है। जांच करने वाला पुलिस अधिकारी यह संज्ञान लेने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है कि संपत्ति आपराधिक गतिविधियों के जरिये हासिल की गई है। इस प्रकार की संपत्ति को अदालत द्वारा जब्त किया जा सकता है और पीड़ितों को इसके माध्यम से मुआवजा दिया जा सकता है।
अधिकारी ने कहा, आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जटिल प्रक्रियाओं के कारण अदालतों में भारी संख्या में मामले लंबित हैं। इससे न्याय मिलने में अत्यधिक देरी, गरीबों और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का न्याय से वंचित होना, सजा की कम दर, जेलों में भीड़-भाड़ और बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदी जैसी समस्या न्याय की राह में बाधा बनी हुई है।
नए प्रस्तावित कानून में छोटे-मोटे केस मसलन 20 हजार तक संपत्ति अपराध से जुड़े मामले को संक्षिप्त ट्रायल से निपटा दिया जाएगा। इसे मजिस्ट्रेट के अलावा पुलिस अधिकारी भी कुछ मामलों में निपटा सकते हैं। ऐसे मामलों में अपराध स्वीकार किया जुर्माना दिया और मामला खत्म। अधिकारी ने कहा कम गंभीर मामले जैसे चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना या रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करने, आपराधिक धमकी जैसे मामलों में संक्षिप्त ट्रायल को अनिवार्य बनाया गया है। तीन वर्ष से कम की सजा के मामलों में मजिस्ट्रेट संक्षिप्त ट्रायल कर सकता है। इससे करीब 33 फीसदी मामले कोर्ट के बाहर निपट जाएंगे। यह व्यवस्था भी दंड के बजाय न्याय की अवधारणा से प्रेरित है।
फेक न्यूज फैलाने वालों को मिलेगी 3 साल की सजा
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में पेश भारतीय न्याय संहिता विधेयक की धारा 195 के तहत एक प्रावधान है जो भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरे में डालने वाली ‘फर्जी खबर या भ्रामक जानकारी’ फैलाने वालों से जुड़ा हुआ है। अगर कोई ऐसा करते हुए पाया जाता है तो उसे तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है। पेज धारा 195 (1) डी में लिखा है कि झूठी या भ्रामक जानकारी जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डाले, उसे बनाने वाले या प्रकाशित करने वाले को कारावास या जुर्माने से दंडित किया जाएगा। कारावास तीन साल तक बढ़ाया भी जा सकता है।
बुरा न मानो ‘श्री 420’ सुनकर
सदियों से ‘420’ को एक मुहावरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जब भी कोई किसी को धोखा देता है, ठगी करता है तो उसे ‘420’ कहा जाता है। आम बोलचाल में ये शब्द खूब रंग गया है। किताबों, उपन्यासों से लेकर तमाम भाषणों में भी इस शब्द का इस्तेमाल होता आ रहा है। इस शब्द पर राजकपूर की फिल्म ‘श्री 420’ भी आई थी। अब धोखेबाज को ‘420’ नहीं कहा जाएगा। इसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 316 के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा। 163 साल से चला आ रहा कानून बदलने जा रहा है।
हत्या – धारा 101
आत्महत्या के लिए उकसाना- धारा 106
अपहरण – 135
दुष्कर्म – 63
सामूहिक दुष्कर्म-70
मानहानि – 354
धोखाधड़ी – 316
दहेज हत्या – 799
चोरी – 301
छीनना- 302