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नई दिल्ली। आंखों की खोई रोशनी दोबारा वापस आएगी। यह चमत्कार करने से वैज्ञानिक बस एक कदम दूर हैं। दशकों से साइंटिस्ट लैब में रेटिनल न्यूरॉन विकसित करने में जुटे थे। उन्होंने इसे तैयार कर लिया है। इसका मकसद आंखों की खोई रोशनी को वापस लाना है। खुशखबरी यह है कि टेस्ट में सफलता मिलने के बाद इन्हें मरीज की आंखों में पहली बार आजमाए जाने की तैयारी है। यह इस तरह का पहला क्लीनिकल ट्रायल होगा। लोग जिस तरह से आज तरह-तरह की स्क्रीन से एक्सपोज हो रहे हैं, उससे आंखों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यह समस्या तकरीबन हर मुल्क में एक जैसी है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अगर क्लीनिकल ट्रायल में सफलता हाथ लगी तो बड़ा बदलाव होगा। इससे अंधेपन और आंखों से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने में बड़ी कामयाबी हाथ लग जाएगी।
– मरीज की आंखों में पहली बार क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी
यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मेडिसन के वैज्ञानिकों की टीम पूरी शिद्दत के साथ रेटिनल न्यूरॉन को विकसित करने में जुटी थी। ये कोशिकाएं बनकर तैयार हैं। टेस्ट में बेहद शानदार नतीजे मिले हैं। पहली बार क्लीनिक ट्रायल में इन्हें मरीज पर आजमाया जाएगा। इन न्यूरॉन्स को रेटिनल ऑर्गेनॉयड्स कहते हैं। इन न्यूरॉन को मानव त्वचा की कोशिकाओं से बनाया जा सकता है। इन्हें स्टेम सेल की तरह एक्ट करने के लिए प्रोग्राम किया गया है।
पहले के अध्ययनों में क्या मिला?
पहले की रिसर्च में इन रेटिनल ऑर्गेनॉयड्स के फोटोरिसेप्टर को रोशनी का पता लगाने के साथ उस सिग्नल को इलेक्टि्रक वेव में तब्दील करते देखा गया था। यह देखने के लिए जरूरी प्रक्रिया है। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ के मुताबिक आंखों के डिस्ऑर्डर में लाइट कैप्चर करने वाली स्वस्थ कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं। ये किसी तरह की विजुअल इनफॉर्मेशन को भेजना बंद कर देती हैं। इससे शरीर उन्हें रीजनरेट नहीं कर पाता।
कैसे काम करती है तकनीक?
यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मेडिसन में न्यूरोसाइंस के प्रोफसर रौनक सिन्हा ने कहा कि मैस्कुलर डीजनरेशन जैसी बीमारियों के कारण व्यक्ति अंधा हो जाता है। इसमें रेटिना के बीच के हिस्सों के कोन मर जाते हैं लेकिन स्टेम सेल टेक्नोलॉजी विकसित होने से इन स्टेम सेल को थ्री डायमेंशनल मिनी रेटिना में विकसित कर सकते हैं। इनमें कोन्स होते हैं। कोन्स आंखों के रेटिना में मौजूद फोटोरिसेप्टर कोशिकाएं होती हैं जो कलर विजन के लिए जिम्मेदार होती हैं।