ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपभोग और तीव्र दोहन हो रहा है जिसका परिणाम मृदा निम्नीकरण, जैव विविधता में कमी और वायु, जल स्रोतों के प्रदूषण के रूप में दिखाई पड़ रहा है। विकास की अंधी दौड़ व पर्यावरण की घोर अनदेखी से प्रकृति का दम घुट रहा है। प्राकृतिक संपदा के अत्यधिक दोहन के कारण पर्यावरण का क्षरण हो रहा है। पर्यावरण अवनयन विशेषकर निर्धन ग्रामीणों में गरीबी को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख कारक है। प्राकृतिक संसाधनों विशेषकर जैवविविधता पर ग्रामीण निर्धनों व आदिवासियों की निर्भरता स्वतः सिद्ध है। महिलाओं पर इन प्राकृतिक संसाधनों के अवनयन का बुरा प्रभाव पड़ता है। कुछ मानवीय क्रियाकलापों, जैसे- वनोन्मूलन, अनवीकरणीय ऊर्जा के अत्यधिक प्रयोग ने पर्यावरण अवनयन की समस्या को बढ़ा दिया है। वनोन्मूलन के कारण मृदा अपरदन, भूस्खलन, गाद का जमाव, वन्य पर्यावरण में क्षति हो रही है, वन्य जीवों के सामने भी संकट उत्पन्न हो गया है।