ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दावा किया है कि चांद पर पानी भारत की खोज है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चंद्रयान-1 पर मौजूद भारत के अपने मून इंपैक्ट प्रोब (एमआईपी) ने लगाया। बाद में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की है।
चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के करीब एक पखवाड़े बाद भारत का एमआईपी यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरा था। उसने चंद्रमा की सतह पर पानी के कणों की मौजूदगी के पुख्ता संकेत दिए थे और इस सदी की महत्वपूर्ण खोज की थी। इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि खनिज और चट्टानों की सतह पर मौजूद है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है।
आंकड़े का सार्वजनिक प्रदर्शन
चंद्रयान-1 द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़े 2010 में जनता के लिए उपलब्ध कराए गए थे। आंकड़े को दो सत्रों में विभाजित किया गया था जिसमें पहला सत्र 2010 के अंत तक सार्वजनिक हो गया था और दूसरा सत्र 2011 के मध्य तक सार्वजनिक हुआ। आंकड़ों में चंद्रमा की तस्वीरें और चंद्रमा की सतह के रासायनिक और खनिज मानचित्रण के आंकड़े शामिल हैं।
भारत का पहला यान
चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-1) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर, 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटेलाइट लांच वेहिकल, पी एस एल वी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुंचने में 5 दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया।
चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा पर हीलियम की तलाश करना भी था। चंद्रयान-प्रथम ने चंद्रमा से 100 किमी ऊपर 525 किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। इसने अपने रिमोट सेंसिंग उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे। भारतीय अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह 27वा ंउपक्रम था। इसका कार्यकाल लगभग 2 साल का होना था, मगर नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूटने के कारण इसे पहले बंद कर दिया गया। इस उपक्रम से चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुला।