ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। गरीबी के अभिशाप से देश की एक बड़ी आबादी को निकालने के लिए सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इनका असर भी दिखाई देने लगा है। नीति आयोग के ताजा आंकड़ों में राहत भरी खबर आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। सबसे अधिक गरीबी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश व राजस्थान में घटी है।
नीति आयोग ने 17 जुलाई को ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023’ के नाम से ये रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार वर्ष 2015-16 से 2019-21 के दौरान 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए हैं। नीति आयोग की ओर से राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) का यह दूसरा संस्करण है। पहला संस्करण नवंबर 2021 में जारी किया गया था।
देश में बहुआयामी गरीबों की संख्या 14.96 प्रतिशत
भारत में वर्ष 2015-16 में बहुआयामी गरीबों की संख्या कुल आबादी की 24.85 प्रतिशत थी, जो 2019-21 में घटकर 14.96 फीसदी हो गई। यानी इस अवधि के दौरान गरीबों की संख्या में आबादी के अनुपात में 9.86 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। देश में करीब 15 फीसदी आबादी अभी भी बहुआयामी गरीब है ।
राज्यवार आंकड़े
राज्यवार बात की जाए, तो उत्तर प्रदेश में गरीबों की संख्या में सबसे ज्यादा कमी आई है। इस अवधि में उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग गरीबी के अभिशाप से बाहर निकले हैं। इसके बाद बिहार से 2.25 करोड़ और मध्य प्रदेश से 1.36 करोड़ लोग गरीबी के अभिशाप से बाहर आए हैं। नीति आयोग ने माना है कि बहुआयामी गरीबों की संख्या में सबसे तेज कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में दर्ज की गई है। नीति आयोग की इस रिपोर्ट से 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान मिलते हैं।
संख्या में भले ही यूपी में सबसे ज्यादा गरीबी घटी है, लेकिन जनसंख्या के प्रतिशत के मामले में बिहार में सबसे ज्यादा गरीबी कम हुई है। 2015-16 में बिहार की 51.89 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी के दंश को झेलने को मजबूर थी, वहीं 2019-21 के दौरान ये आंकड़े सुधर कर 33.76प्रतिशत रह गए हैं। मध्य प्रदेश के लिए ये आंकड़ा 20.63 फीसदी और यूपी के लिए 22.63 फीसदी रहा।
इस प्रगति के बावजूद बिहार अभी भी आबादी के प्रतिशत के हिसाब से देश का सबसे गरीब राज्य है। इसके बाद झारखंड और मेघालय का नंबर आता है। फिर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का नंबर है। असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नगालैंड और राजस्थान आबादी के प्रतिशत हिसाब से 10 सबसे गरीब राज्यों में शामिल हैं।
– देश में पांच साल में 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से हुए मुक्त
– पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता, खाना पकाने के ईंधन की अहम भूमिका
– शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में गरीबी तेज गति से घटी
– 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों के अनुमान मिलेे
केरल सबसे कम गरीब राज्य
आबादी प्रतिशत के हिसाब से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर गरीबी के मोर्चे पर सबसे बेहतर स्थिति पुडुचेरी की है। वहीं राज्यों में सबसे बेहतर स्थिति केरल की है। उसके बाद गोवा और तमिलनाडु का नंबर आता है। नीति आयोग की ये रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अभी भी केरल ही देश का सबसे कम गरीब राज्य है यानी यहां के नागरिकों का जीवन स्तर औसतन सबसे बढ़िया है।
ग्रामीण इलाकों में गरीबी में तेजी से कमी
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच बहुआयामी गरीबी में असमानताएं अभी भी मौजूद हैं। ग्रामीण इलाकों में गरीबी का दंश ज्यादा व्यापक है। राहत की बात ये है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में इस दौरान गरीबी तेज गति से घटी है। शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 फीसदी से घटकर 5.27 प्रतिशत हो गई, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी 32.59 से गिरकर 19.28 प्रतिशत हो गई है। नीति आयोग ने शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच मौजूद इस फर्क को लेकर चिंता जाहिर की है।
एसडीजी लक्ष्य तय समय से पहले कर लेंगे हासिल
एमपीआई मूल्य पांच साल में 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है। इसकी वजह से 2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता या गहनता 47 से घटकर 44 फीसदी हो गई है। गरीबी की तीव्रता या गहनता किसी भी देश में रहने वाले लोगों के बीच औसत अभाव को मापती है। इसका परिणाम ये है कि भारत 2030 की तय समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करने का लक्ष्य) को हासिल करने की राह पर आगे बढ़ रहा है।
बहुआयामी गरीबी में कमी की बड़ी वजह
नीति आयोग ने माना है कि पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन की गरीबी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों तक बिजली, बैंक खातों की पहुंच और पेयजल सुविधा मिलने से एक बड़ी आबादी के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मोर्चे पर जो उल्लेखनीय प्रगति हुई है, उसके लिए नीति आयोग ने सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रमों, स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन को महत्वपूर्ण बताया है।
इसमें कहा गया है कि पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे कार्यक्रमों से स्वास्थ्य में अभावों को कम करने में मदद मिली है। स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन जैसी पहल से स्वच्छता संबंधी सुधार में मदद मिल रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट में गरीबी को कम करने में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जनधन योजना और समग्र शिक्षा जैसी पहलों को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
कहा गया है कि पीएम उज्ज्वला योजना से रसोई गैस की कमी में 14.6 फीसदी का सुधार देखा गया है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक गरीबी मापने का एक ऐसा पैमाना है, जो सिर्फ किसी शख्स की इनकम या आय से ही नहीं जुड़ा हुआ है। जिन 12 एमपीआई संकेतकों के जरिए गरीबी को लेकर रिपोर्ट तैयार की जाती है, उसमें मात्रा के साथ ही गुणवत्ता पर भी फोकस है।