ब्लिट्ज ब्यूरो
ओस्लो। प्रकृति में आ रहे बदलाव के कारण पर्यावरण पर भीषण असर पड़ा है। सैकड़ों वैश्विक चर्चाओं और कई प्रयासों के बाद भी पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया जा सका। नई जांच रिपोर्ट के अनुसार अब आर्कटिक महासागर में गर्मियों वाली बर्फ 2030 तक विलुप्त हो जाएगी।
बर्फ को संरक्षित करने में काफी देर हो चुकी है। नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पेरिस में हुई जलवायु संधि के तहत अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर भी रोका जाए तब भी आर्कटिक महासागर पर तैरती बर्फ को पिघलने से नहीं रोक सकते। हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नॉटज ने कहा कि बर्फ को एक आवास और लैंडस्केप के तौर पर संरक्षित करने में काफी देर हो चुकी है। बहुत जल्द गर्मियों में होने वाली बर्फ पिघल जाएगी। जितना टुकड़ा अभी बचा है, हम उसे सुरक्षित करने के लिए काफी लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हम काफी अहम चीज को खो देंगे।
दक्षिण कोरिया के एक शोधकर्ता और लेखक सेउंग की मिन ने बताया कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी। बर्फ के टुकड़े के पिघलने के कारण इससे ग्रीनहाउस गैस और समुद्री जलस्तर बढ़ेगा। पूरे महासागर में बर्फ सात प्रतिशत से कम है। वैज्ञानिक इसे बर्फ मुक्त कहते हैं। फरवरी में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है। 1991-2020 के औसत से यह स्थिति लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है।