ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सेंट्रल गवर्नमेंट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि विदेशियों को रिफ्यूजी के रूप में सभी मामलों में स्वीकृति नहीं दी जा सकती है। खास तौर पर तब, जब ऐसे ज्यादातर लोग गैर कानूनी तरीके से देश में घुस चुके हैं। केंद्र ने दावा किया कि रोहिंग्या के गैर कानूनी तरीके से रहने से नेशनल सिक्योरिटी पर गंभीर असर पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी समझौते पर साइन नहीं किए
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि भारत ने 1951 के शरणार्थी दर्जे से जुड़े संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी समझौते पर या शरणार्थियों की हालात से संबंधित प्रोटोकॉल, 1967 पर साइन नहीं किए हैं। इस प्रकार किसी भी वर्ग के लोगों को शरणार्थी के रूप में मान्यता दी जानी है या नहीं, यह एक ‘‘शुद्ध नीतिगत निर्णय’’ है। हलफनामा उस पिटीशन के संबंध में दायर किया गया है, जिसमें केंद्र को उन रोहिंग्याओं को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जिन्हें जेलों या डिटेंशन सेंटर या किशोर गृहों में बिना कोई वजह बताए या फॉरेन एक्ट के प्रावधानों के कथित उल्लंघन के लिए हिरासत में लिया गया है।
– कहा, सभी विदेशियों को रिफ्यूजी नहीं मान सकते
देश के अपने नागरिकों को प्राथमिकता देना जरूरी
हलफनामे में कहा गया है, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सीमित संसाधनों वाले विकासशील देश के रूप में, देश के अपने नागरिकों को प्राथमिकता देना जरूरी है। इसलिए, विदेशियों को शरणार्थी के रूप में पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है, खासकर ऐसी हालात में जब ज्यादातर विदेशियों ने गैर कानूनी तरीके से देश में एंट्री किया है।
अनियंत्रित इमिग्रेशन के खतरे
सुप्रीम कोर्ट के 2005 के एक फैसले का हवाला देते हुए हलफनामे में अनियंत्रित इमिग्रेशन के खतरों को बताया गया। इसमें कहा गया है, रोहिंग्याओं का भारत में रहना पूरी तरह से अवैध होने के अलावा, नेशनल सिक्योरिटी के संबंध में गंभीर खतरा पैदा करता है।